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'दुनिया भर में बढ़ते प्रचार प्रसार की वजह से हिंदी का मुरीद हुआ बाजार'

भाषाविद प्रो. प्रभाकर पाठक ने कहा कि हिंदी के लिए अगर हम ये कहें कि बाजारवाद की वजह से इसका ग्लोबल प्रसार हो रहा है, तो ये सिरे से गलत है. प्रभाकर पाठक ने कहा कि यह बाजार पर हिंदी का उपकार और उसी की देन है कि बाजार बढ़ रहा है. दुनिया भर से जो लोग भी भारत में अपना बाजार खड़ा करना चाहते हैं, उन्हें हिंदी को अपनी भाषा बनाना पड़ रहा है.

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Published : Jan 10, 2020, 9:28 PM IST

दरभंगाः विश्व हिंदी दिवस के मौके पर स्वयंसेवी संस्था डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन और एमआरएम कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. एस संगोष्ठी का मुख्य विषय 'बाजारवाद और हिंदी का प्रसार' था. संगोष्ठी में छात्राओं और शिक्षिकाओं ने हिंदी के विश्वव्यापी प्रसार की वजह से इसके उपयोग को बाजार की मजबूरी बताया.

विश्व हिंदी दिवस के मौके पर संगोष्ठी का आयोजन
संगोष्ठी के दौरान छात्रा सुषमा झा ने कहा कि हिंदी बहुत आसान भाषा है. इसलिए इसका दुनिया भर में प्रसार हो रहा है, जो व्यक्ति इसे बोल नहीं पाता, वह भी इसे समझ सकता है. इसलिए अपने प्रोडक्ट के ज्यादा प्रसार के लिए बाजार हिंदी का उपयोग करता है.शिक्षिका सुकृति ने कहा कि आज बाजार का ही प्रभाव है कि बच्चे अंग्रेजी माध्यम में भले ही पढ़ें. लेकिन वे हिंदी का ज्यादा उपयोग कर रहे हैं, भले ही बाजारवाद हावी हो. लेकिन हिंदी को कोई नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि इसकी प्रगति हो रही है.

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बाजार हिंदी भाषा का करता है उपयोग
वहीं, भाषाविद प्रो. प्रभाकर पाठक ने कहा कि हिंदी के लिए अगर हम ये कहें कि बाजारवाद की वजह से इसका ग्लोबल प्रसार हो रहा है, तो ये सिरे से गलत है. प्रभाकर पाठक ने कहा कि यह बाजार पर हिंदी का उपकार और उसी की देन है कि बाजार बढ़ रहा है. दुनिया भर से जो लोग भी भारत में अपना बाजार खड़ा करना चाहते है, उन्हें हिंदी को अपनी भाषा बनाना पड़ रहा है.

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