दरभंगाः ईटीवी भारत बिहार में बाढ़ की स्थिति पर लगातार ग्राउंड रिपोर्ट दे रहा है. दरभंगा जिले में इस बार बाढ़ ने पिछले 2 दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित प्रखंडों में से एक हायाघाट में बागमती नदी के सिरिनिया तटबंध पर मल्हीपट्टी, सिरिनिया और अम्माडीह समेत कई गांव लोग शरण लिए हुए हैं. हमारे संवाददाता जब यहां पहुंचे तो बाढ़ के विस्थापित लोगों का दर्द छलक उठा. करीब एक हजार विस्थापित परिवार बेहद खराब स्थिति में यहां रह रहे हैं.
पशुओं को भी नहीं मिल रहा चारा
साल 2004 में आई बाढ़ की भीषण तबाही को भी इस बार की बाढ़ ने पार कर लिया है. विस्थापित लोगों में अधिकतर प्रवासी शामिल हैं. जो कोरोना की वजह से दूसरे राज्य सो नौकरी छोड़ कर लौटे हैं. सरकार इन्हें रोजी-रोजगार तो नहीं दे पाई लेकिन बाढ़ की मुसीबत आई तो उन्हें इनके हाल पर जरूर छोड़ दिया. यहां बनाए गए कम्युनिटी किचन में पिछले तीन दिन से ताला बंद है. लोग फाका कर रहे हैं तो वहीं इनके पशु भी चारा नहीं मिलने से भूखे-प्यासे रह रहे हैं.
बाढ़ में डूब गए घर
लोग माल-मवेशियों और बाल-बच्चों के साथ एक ही झोपड़ी में रह रहे हैं. बारिश में टपकती प्लास्टिक शीट में भीग कर रात-दिन काट रहे हैं. लोगों ने कहा कि न तो जनप्रतिनिधि और न ही प्रशासन के अधिकारी उन्हें पूछने आते हैं. स्थानीय सरिता देवी ने कहा कि बाढ़ के पानी में उनका घर डूब गया जिसकी वजह से कपड़े से लेकर बर्तन और अन्य सामान भी डूब गए. बाल-बच्चों के पहनने के लिए भी कपड़ा नहीं है. उन्होंने कहा कि पिछले 3 दिनों से उन लोगों को भोजन नहीं दिया जा रहा है.
कम्युनिटी किचन में लगा ताला बंद है कम्युनिटी किचन
सरिता देवी ने बताया कि यहां एक कम्युनिटी किचन बनाया गया था. जो 800 लोगों के लिए था लेकिन इसमें 400 लोगों का खाना बनता था और बाकी लोग भूखे रहते थे. इसी मुद्दे पर विवाद हो गया और किचन बंद हो गया. यहां के लोग अब कैसे खा रहे हैं यह भी पूछने कोई नहीं आता
गांव में फंसे हैं कुछ लोग
स्थानीय सुनीता देवी ने कहा कि यहां लोग बाल-बच्चों और माल-मवेशियों के साथ रह रहे हैं. यहां न तो लोगों के लिए खाना है और न ही मवेशियों के चारे का इंतजाम है. उन्होंने बताया कि बच्चों के बीमार पड़ने पर भी दवा नहीं मिलती है. लोग नकद पैसे होने पर दुकान से खरीद कर खाते हैं नहीं तो भूखे रहते हैं. सुनीता देवी ने कहा कि पिछले 15 दिनों से वे लोग बांध पर रह रहे हैं. वहीं कुछ लोग गांव में ही फंसे हुए हैं. लेकिन उनकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है.
चूड़ा खाकर काट रहे दिन
एक अन्य स्थानीय मानकी देवी ने कहा कि उनके दो बेटे और दो बहुओं का परिवार है. माल-मवेशियों के साथ एक ही प्लास्टिक शीट की झोपड़ी में सभी लोग रहते हैं. बारिश में प्लास्टिक से पानी टपकता है. किसी तरह भीग कर समय काटते हैं. वहीं, स्थानीय सुभाष यादव ने कहा कि बारिश में भी बांध पर बाहर ही रहना पड़ता है. एक प्लास्टिक की झोपड़ी में उनका 10 लोगों का परिवार नहीं रह पाता है. उन्होंने कहा कि खाने के लिए कुछ नहीं है. नकद पैसा है तो चूड़ा खरीद कर खाते हैं नहीं तो ऐसे ही रहते हैं.
नहीं मिली आपदा की राशि
सुभाष यादव ने बताया कि सरकार जो छह हजार रुपये उनके एकाउंट में डालने का दावा कर रही है. वह पैसा भी अब तक नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि अभी तक उसकी लिस्ट भी नहीं बननी शुरू हुई है. सुभाष यादव ने कहा कि इस बांध पर कम से कम 3 महीने रहने पड़ेंगे. हर साल की यही स्थिति होती है.