बिहार

bihar

ETV Bharat / state

ग्राउंड रिपोर्ट: जब बाढ़ बहा ले गई फसल और कर्ज में डूबे हों किसान, तो कैसे ग्लोबल ब्रांड बनेगा मखाना?

दरभंगा में किसानों के जरिए मखाना की व्यापक खेती की जाती है. मगर इस मखाना की तैयार फसल को जब खेत से निकालने की बारी आई तो बाढ़ ने अपनी दस्तक दे दी, देखें ग्राउंड रिपोर्ट.

मखाना
मखाना

By

Published : Aug 26, 2020, 10:06 AM IST

Updated : Aug 26, 2020, 1:53 PM IST

दरभंगाःपूरी दुनिया में जिससे मिथिलांचल की पहचान है, उसमें से एक मखाना की फसल को इस बार की बाढ़ ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है. मखाना किसानों की लाखों की पूंजी पानी में बह गई. अब कुछ बचा है तो वो है तालाब के किनारे मखाना की बर्बादी का मंजर.

बाढ़ ने बर्बाद की किसानों की फसल
जिले के सदर प्रखंड की सारा महम्मद पंचायत के चंदन पट्टी गांव में 10-15 किसान मखाना की खेती करते हैं. इस बार की बाढ़ ने सभी किसानों की फसल को बर्बाद कर दिया. कुछ किसानों ने हिम्मत कर के उसी तालाब में सिंघाड़ा की खेती की है, लेकिन मखाना की फसल के भारी नुकसान की भरपाई सिंघाड़ा की खेती से नहीं हो सकती है. अब किसान सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

परेशान मखाना किसान

तीन लाख की पूंजी बाढ़ के पानी में बह गई
ईटीवी भारत संवाददाता ने चंदन पट्टी गांव में बाढ़ से बर्बाद मखाने की फसल का जायजा लिया और कुछ किसानों से बात की तो उन्होंने बताया कि पहले भी कभी मखाना की फसल की क्षति का मुआवजा उन्हें नहीं मिला है. इसलिए इस बार भी नुकसान की भरपाई की उम्मीद नहीं के बराबर है.

मखाना किसान

स्थानीय किसान तेजू पासवान बताते हैं किः
'तीन बीघा में मखाना की फसल लगाई थी. पत्नी और बहू के जेवर गिरवी रखने के अलावा महाजन से सूद पर कर्ज भी लिया था. खेती में तीन लाख रुपये की लागत आई थी, लेकिन सारी पूंजी बाढ़ के पानी में बह गई.'

किसान तेजू आगे कहते हैंः
'अगर ये फसल बर्बाद नहीं होती तो 10 लाख की आमदनी होती. लेकिन बाढ़ ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. अब चिंता है कि पत्नी और बहू के जेवर कैसे छुड़ाएंगे और महाजन का कर्ज कहां से चुकाएंगे.'

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

किसान विक्रम यादव का कहना है किः
'तीन बीघा 10 कट्ठा में मखाना की खेती की थी. तीन लाख रुपये लागत आई, लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा है. अब कर्ज के बोझ के सिवा उनके पास कुछ भी नहीं बचा है. सरकार मखाना की ब्रांडिंग की बात करती है, लेकिन किसानों तक कुछ भी नहीं पहुंचता है. यहां तक कि फसल क्षति का मुआवजा भी नहीं मिलता है.'

बाढ़ में बर्बाद मखाने की फसल

'दूसरी फसलों के लिए मुआवजा तो मखाना के लिए क्यों नहीं'
सारा महम्मद पंचायत के उप मुखिया विजय कुमार ने कहा कि 'मखाना की फसल बर्बाद होती है तो सरकार उसके लिए कुछ नहीं करती है. वे सरकार से मांग करेंगे कि जिस तरह से दूसरी फसलों की क्षति के लिए सरकार मुआवजा देती है, उसी तरह मखाना की फसल बर्बाद होने पर भी मुआवजा दिया जाए.'

मखाना तालाब

800 से 1000 रुपये प्रति किलो बिकता है मखाना
मिथिलांचल में उत्पादित मखाने को खरीदकर व्यवसायी दक्ष मजदूरों से इसे तैयार कराते हैं. इसके बाद इसकी पैकिंग कर महानगरों तक भेजा जाता है. बिहार में मखाना लगभग 500 रूपये किलो मिलता है. जबकि यही मखाना बड़े महानगरों तक जाते-जाते 800 से 1000 रूपये प्रति किलो हो जाता है.

इसकी खेती और तैयार फसल को निकालने तक किसानों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है. हालांकि, किसानों के लिए ये नकदी फसल है और दाम भी हाथों हाथ मिल जाता है. लेकिन जब बाढ़ के दिनों में यह फसल बर्बाद हो जाती है, सरकार इसके किसानों को मुआवजा तक नहीं देती.

मखाना

पीएम मोदी ने की थी बिहार के मखाना की तारीफ
बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के उद्घाटन के दौरान अपने संबोधन में भारत के कई खाद्य पदार्थों की तारीफ की थी. इस दौरान पीएम ने बिहार के मखाने भी जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि हमारे बिहार में मखाना खूब होता है. अब हमें देखना है कि कैसे इसकी पैकजिंग बढ़ियां करें, ताकि ग्लोबल मार्केट में इसे बेचा जा सके, लेकिन सवाल ये उठता है कि जब मखाने की मार्केट वैल्यू इतनी ज्यादा है तो फिर इस खेती में लगे किसानों की तरफ सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता.

Last Updated : Aug 26, 2020, 1:53 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details