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विधान पार्षद सर्वेश कुमार ने मिथिला संस्कृत शोध संस्थान का किया निरीक्षण, बदहाली पर जताई चिंता

दरभंगा में विधान पार्षद सर्वेश कुमार ने मिथिला संस्कृत शोध संस्थान का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान संस्थान की बदहाली पर चिंता जताई.

मिथिला संस्कृत शोध संस्थान
मिथिला संस्कृत शोध संस्थान

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Published : Feb 4, 2021, 8:16 PM IST

Updated : Feb 4, 2021, 9:07 PM IST

दरभंगा: स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद सदस्य सर्वेश कुमार ने दरभंगा के मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान विधान पार्षद के साथ ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो. जयशंकर झा और सामाजिक कार्यकर्ता उज्जवल कुमार भी मौजूद थे. संस्थान के निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने विधान पार्षद का स्वागत किया. निरीक्षण के दौरान संस्थान के निदेशक और कर्मचारियों ने विधान पार्षद को एक ज्ञापन भी सौंपा. विधान पार्षद ने संस्थान की बदहाली पर चिंता जताई और इसके उद्धार के लिए काम करने की बात कही.

विधान पार्षद सर्वेश कुमार को एक ज्ञापन सौंपा

क्या कहते हैं विधान पार्षद सर्वेश कुमार
विधान पार्षद सर्वेश कुमार ने कहा कि मिथिला संस्कृत शोध संस्थान ने देश की कई बड़ी संस्थाओं की स्थापना में मदद की थी और उनके उन्नयन के लिए काम किया था. उसी में से दरभंगा का मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान भी शामिल है. उन्होंने कहा कि आज यह संस्थान बदहाल है और इसके उन्नयन की जरूरत है. विधान पार्षद ने कहा कि वे इस संस्थान के उन्नयन के लिए काम करेंगे. साथ ही विधान परिषद में भी इस प्रश्न को उठाएंगे.

मिथिला संस्कृत शोध संस्थान का निरीक्षण

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मिथिला संस्कृत संस्थान पूरी दुनिया में रहा मशहूर
बता दें कि दरभंगा का मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान संस्कृत भाषा की शिक्षा और उसमें शोध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर रहा है. इस संस्थान में करीब साढ़े 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां हैं. इनमें संस्कृत साहित्य, न्याय शास्त्र, मीमांसा और धर्म के अलावा कई विषयों की दुर्लभ पांडुलिपियां शामिल हैं जो मिथिलक्षर, संस्कृत, उड़िया और पाली जैसी भाषाओं में लिखी गई हैं.

इस संस्थान की स्थापना दरभंगा महाराज सर कामेश्वर सिंह ने 1951 में की थी. महाराजा ने इस संस्थान की स्थापना के लिए 62 बीघा जमीन और साढ़े 3 लाख रुपये दान दिए थे. इस संस्थान का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 नवंबर 1951 को किया था. एक जमाना था जब इस संस्थान में दुनिया भर से छात्र अध्ययन एवं शोध के लिए आते थे.

देखिए रिपोर्ट

अभी भी है संस्थान की समस्या
संस्थान के रिकॉर्ड के अनुसार, यहां रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, फ्रांस और दूसरे यूरोपियन देशों से भी शोधार्थी आते थे, लेकिन आज यह संस्थान बदहाल स्थिति में है. यहां की पांडुलिपियां पिछले कई साल से एक कमरे में बंद पड़ी हैं. संस्थान में शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मियों के अधिकतर पद खाली होने की वजह से यहां अध्ययन-अध्यापन में बाधा आ रही है. इस वजह से शोध के लिए छात्रों का आना भी कम हो गया है.

Last Updated : Feb 4, 2021, 9:07 PM IST

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