दरभंगा: जिले के दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के कोरोना आइसोलेशन वार्ड में दिल को झकझोर देने वाले ऐसे कई दृश्य दिखे जहां कोरोना महामारी ने मानवीय रिश्तों को तार-तार करके रख दिया. कहीं, बेटा बाप के शव को लेने से लिखित रूप से इनकार कर रहा है. तो कहीं, पत्नी पति के शव को देखने तक नहीं आ रही है. ऐसे शवों के अंतिम संस्कार करने में जिला प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं.
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कोरोना से मौत, पिता का शव लेने से बेटे का इनकार
दरभगा के केवटी प्रखंड में एक बुजुर्ग की कोरोना से मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन ने इसकी सूचना उनके घरवालों की दी. लेकिन, उनके तीन बेटों में से दो ने बॉडी लेने से मना कर दिया. दो बेटे और उनका पूरा परिवार कोरोना संक्रमित थे. तीसरे बेटे ने पिता का शव लेने से लिखित रूप से इनकार कर दिया और अपना मोबाइल बंद कर लिया. इसके बाद कबीर संस्थान ने मानव धर्म निभाते हुए इस बुजुर्ग के अंतिम संस्कार का फैसला लिया. संस्थान के एक मुस्लिम युवक ने बेटे का फर्ज निभाते हुए हिंदू रीति रिवाज से बुजुर्ग का अंतिम संस्कार किया.
शव को देखने तक नहीं आई पत्नी
वहीं, दूसरी घटना 10 अप्रैल को हुई जब दरभंगा के मनीगाछी प्रखंड के एक गांव के 30 वर्षीय युवक की कोरोना से डीएमसीएच में मौत हो गई. युवक मुंबई में काम करता था. उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे थे. अस्पताल प्रशासन इसकी सूचना परिवार को दी. लेकिन, पत्नी अपने पति का शव लेने नहीं आई. इन दोनों शवों का अंतिम संस्कार कबीर सेवा संस्थान के लोगों ने किया.
इंसानियत की मिसाल
इस मुश्किल घड़ी में कबीर सेवा संस्थान नामक एक स्वयंसेवी संगठन इंसानियत की मिसाल पेश कर रहा है. कबीर सेवा संस्थान के 12 सदस्य अपनी जान की बाजी लगाकर ऐसे शवों का उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार कर रहे हैं. इस संस्थान के लोगों ने कोरोना काल में अब तक करीब दो दर्जन हिंदू धर्म के मृतकों और करीब एक दर्जन मुस्लिम धर्म के मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार किया है. ऐसे शवों के अंतिम संस्कार के लिए विशेष रूप से श्मशान और कब्रिस्तान का चयन किया गया है.