दरभंगा: 2 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस. पी. सिंह ने किया. जबकि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शशिनाथ झा ने अध्यक्षता की. इस संगोष्ठी में नेपाल और श्रीलंका समेत देश-विदेश के कई जाने-माने संस्कृत के विद्वानों ने शिरकत की.
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संगोष्ठी का आयोजन
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कोलंबो, श्रीलंका के बौद्ध एवं पालि विश्वविद्यालय के डीन लैंग्वेज फैकल्टी और संस्कृत विभागाध्यक्ष भंते प्रो. लेनेगल सिरिनिवास महाथेरो ने कहा कि श्रीलंका में संस्कृत एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में पढ़ाया जाता है. उन्होंने कहा कि यहां बौद्ध साहित्य के रूप में संस्कृत की पढ़ाई देश भर में होती है.
'संस्कृत को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा. सेमिनार और संगोष्ठी से आगे बढ़कर शिक्षकों को इसके लिए काम करना होगा.'- प्रो. गोविंद चौधरी, पूर्व विभागाध्यक्ष, काठमांडू संस्कृत विश्वविद्यालय, नेपाल
'पुराने जमाने में जब संस्कृत का बड़े पैमाने पर छात्र अध्ययन करते थे तब समाज में संवेदनशीलता थी. संस्कृत के ग्रंथों में समाज में अनुशासन और संवेदनशीलता बनाए रखने के लिए कई उपदेश और श्लोक हैं. संस्कृत के अध्ययन की कमी के कारण ही समाज में संवेदनशीलता की भी कमी हो रही है. इसलिए संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन को बढ़ावा देना होगा.'- प्रो. शशिनाथ झा, कुलपति, केएसडीएसयू
'प्राचीन परंपरा और संस्कृति को बढ़ावा देना'
इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का उद्देश्य भारत की प्राचीन परंपरा और संस्कृति को बढ़ावा देना है. इस संगोष्ठी में देश-विदेश के 16 विश्वविद्यालयों के संस्कृत के विद्वान शामिल हो रहे हैं. संगोष्ठी में देश भर के 485 प्रतिभागी ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से भाग ले रहे हैं.