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सन्नाटे का अंत: नवरात्र के पहले दिन श्यामा मंदिर पहुंचे श्रद्धालु, सोशल डिस्टेसिंग का हुआ पालन

श्यामा मंदिर के पुजारी भृगुनाथ झा ने कहा कि इस बार कोरोना की वजह से मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूजा हो रही है. उन्होंने कहा कि इस बार दुर्गापूजा के अवसर पर होने वाली भागवत कथा समेत किसी भी कार्यक्रम का आयोजन नहीं होगा.

Navratri
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Published : Oct 17, 2020, 9:54 PM IST

दरभंगा:शनिवार से नवरात्र की शुरुआत हो गई है. लेकिन इस बार कोरोना महामारी की वजह से मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु नहीं जुटे. पूजा पंडाल बनाने की अनुमति इस बार जिला प्रशासन ने नहीं दी है. उधर, नवरात्र के पहले दिन दरभंगा राज के श्यामा मंदिर में काफी कम संख्या में श्रद्धालु पहुंचे.

हर साल नवरात्र में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां जिला प्रशासन के निर्देश पर सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने को लेकर कड़ाई बरती जा रही है. ईटीवी भारत संवाददाता विजय कुमार श्रीवास्तव ने नवरात्र के पहले दिन श्यामा मंदिर पहुंच कर कुछ श्रद्धालुओं से बात की.

पूर्जा-अर्चना करते भक्त

'श्रद्धा-भक्ति के साथ जीवन की रक्षा भी जरूरी'
श्रद्धालु प्रकाश कुमार ने कहा श्रद्धा-भक्ति के साथ जीवन की रक्षा भी जरूरी है. इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मास्क लगा कर पूजा करने आए हैं. उन्होंने कहा कि मां श्यामा के दरबार में आकर मन को शांति मिलती है. वहीं, एक अन्य श्रद्धालु अवधेश कुमार ने कहा कि पिछले सालों की तरह इस बार दुर्गापूजा में भीड़ नहीं दिख रही है. उन्होंने कहा कि मां श्यामा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है. इसलिए वे मां के दर्शन करने आए हैं.

देखें रिपोर्ट.

श्यामा मंदिर के पुजारी भृगुनाथ झा ने कहा कि इस बार कोरोना की वजह से मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूजा हो रही है. उन्होंने कहा कि इस बार दुर्गापूजा के अवसर पर होने वाली भागवत कथा समेत किसी भी कार्यक्रम का आयोजन नहीं होगा.

माता काली की प्रतिमा

महाराजा ने की थी श्यामा माई मंदिर की स्थापना
विशालकाय श्यामा माई मंदिर की स्थापना 1933 में दरभंगा महाराजा कामेश्वर सिंह ने की थी, जिसमें मां श्यामा की विशाल मूर्ति भगवन शिव की जांघ एवं वक्षस्थल पर अवस्थित है. मां काली की दाहिनी तरफ महाकाल और बायीं ओर भगवान गणेश और बटुक की प्रतिमाएं स्थापित हैं. चार हाथों से सुशोभित मां काली की इस भव्य प्रतिमा में मां के बायीं ओर के एक हाथ में खड्ग, दूसरे में मुंड तो वहीं दाहिनी ओर के दोनों हाथों से अपने पुत्रों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में विराजमान हैं.

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