दरभंगा: बिहार के दरभंगा जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर दरभंगा-सहरसा जिला के सीमा के पास स्थित कुबोल मुसहरी टोला की हालत बदहाल है. यहां के लोग आज भी घोंघा खाकर गुजर बसर करने को मजबूर (Survive by eating snails in Kubol Musahar Tola) है. ये टोला किरतपुर प्रखंड के कोशी नदी के किनारे बसा है जो कि अपने संघर्ष की कहानी खुद बयां कर रहा है. गरीबी और लाचारी का आलम यह है कि इनलोगों के पास ना तो पक्का मकान है(housing scheme in Darbhanga), ना ही शौचालय. आज भी इस गांव की महिलाएं और पुरुष खुले में शौच करते हैं. यहां पर रह रहे बच्चों की पढ़ाई की बात दूर, तन ढकने के लिए ठीक से कपड़ा नसीब नहीं है. इस समाज के सामने आज भी सबसे बड़ी समस्या खाने-पीने की है. इस समाज के अधिकांश पुरुष दूसरे प्रदेश में काम करते है और महिलाएं आज भी कमर भर पानी में जाकर घोंघा, करमी का पत्ता तोड़कर लाती हैं और खाना बनाकर अपने परिवार का पेट पालती हैं.
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घोंघा खाकर यहां के लोग करते हैं गुजारा: दोनों वक्त भोजन नहीं मिलने का नतीजा यह होता है बच्चे कुपोषित भी हो जाते है. यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन सौ फीसदी सच है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली व खाद्य सुरक्षा गारंटी के रहते हुए भी मुसहर जाति के लोग आज भी घोघा, पानी में उगने वाला करमी और चूहा खाकर अपनी भूख को शांत करते हैं. अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनकी सेहत और शारीरिक विकास किस तरह से होता होगा. अपने बच्चों के लिए खाना बना रही मुन्नी देवी ने कहा कि साल के 6 महीना हमलोग पानी से घिरे रहते हैं. सरकारी अनाज तथा घोघा, करमी के पत्ते को तोड़कर लाते हैं और खाना बनाकर इसी प्रकार हम लोग अपने पेट को पालते हैं.
''पैसा के अभाव में हम लोग दाल और हरी सब्जी नहीं खा पाते हैं. सरकारी स्तर पर अभी तक हम लोगों को किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल सका है. जिसके चलते एक कमरे में 5 लोग गुजर-बसर करते हैं. आज भी हमारे समाज के लोग मजबूरी में चूहा और घोघा खाने को विवश है. मजबूरी में कमर भर पानी में जाकर घोघा, करमी का पत्ता को तोड़कर लाना पड़ता है। जिसमें काफी खतरा बना रहता है।''-मुन्नी देवी, कुबोल मुसहरी टोला, किरतपुर प्रखंड
कुबोल मुसहरी टोला का हाल: करीब डेढ़ सौ परिवार के इस गांव में ना तो एक शौचालय देखने को मिला, ना ही एक भी पक्का का मकान. इस संबंध में जब हमने कमलू सदा से बात किया तो उन्होंने बताया कि काफी पहले हमारे गांव के 17 लोगों को आवास योजना का लाभ मिला था. उस वक्त सरकार की ओर से घर बनाने के लिए 25 हजार मिलता था. काफी दौड़ धूप करने के बाद हमलोगों के हाथ में मात्र 10 हजार रुपया आया. जिससे घर नही बन सका. हैरानी की बात ये है कि ये टोला ODF घोषित हो गया.
''सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है. यहां पर काम नहीं होने के कारण हम लोग दूसरे परदेस जाकर कमाते हैं. किसी प्रकार जीवन यापन कर रहे हैं. ODF घोषित होने के बावजूद भी सरकार की दोहरी नीति के कारण हम लोगों को खुले में शौच करना पड़ता है. जिसके कारण हम लोगों को काफी परेशानी भी होती है''- कमलू साद, स्थानीय, कुबोल मुसहरी टोला
पढ़ाई के लिए सरकारी सुविधाएं नाकाफी: अपने बच्चों के साथ बैठी तारा देवी ने कहा कि नजदीक में स्कूल नहीं रहने के कारण बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल भी नहीं जा पाते हैं. जिसके कारण आज भी उनके समाज में शिक्षा न के बराबर है. तारा देवी ने कहा कि स्वास्थ्य को लेकर भी हम लोग परेशान रहते हैं.
''यहां से अस्पताल तकरीबन 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर है. वहां पर जाने के बावजूद भी किसी प्रकार का सुविधा हम लोगों को नहीं मिल पाता है. अस्पताल में कुछ दवा देकर डॉक्टर बाहर से दवा लेने को बता देते हैं. जिसके कारण काफी परेशानियां होती है. जिसके पास पैसा होता है वह तो अपना इलाज करवा लेते हैं. लेकिन, जिनके पास पैसा का अभाव होता है उनका इलाज भगवान भरोसे ही चलता है''- तारा देवी, स्थानीय, कुबोल मुसहरी टोला
स्वस्थ्य व्यस्था बदहाल: स्वास्थ्य को लेकर ही गांव के युवा सुनील कुमार ने कहा कि हमारे यहां सबसे बड़ी समस्या है. हमारे गांव से तकरीबन 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर किरतपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. वहां जाने के बावजूद भी हम लोगों को समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है. दवा की किल्लत की वजह से पेट दर्द हो या फिर सिर दर्द एक ही दवा दिया जाता है. ज्यादा होने पर वहां के डॉक्टर बाहर से दवा खरीदने को बता देते हैं.
''सबसे बड़ी समस्या यहां पर गर्भवती महिलाओं को है. समुचित सुविधा नहीं होने के कारण खाट या अन्य सुविधा से अस्पताल ले जाते हैं. अगर पर समय पर नहीं पहुंचे तो जच्चा-बच्चा में से किसी एक की मौत हो जाती है''- सुनील कुमार, स्थानीय, कुबोल मुसहरी टोला
रोजगार बिना कमाई ठप: वहीं समाजसेवी रमन कुमार बताते हैं कि यहां की सबसे बड़ी समस्या गरीबी है. जिसका मुख्य वजह है यहां पर रोजगार का ना होना. वहीं स्वास्थ्य की समस्या भी एक बहुत बड़ी समस्या है. यहां से 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्वास्थ्य केंद्र अवस्थित है. जहां पर लोग इलाज के लिए जाते हैं. वहीं उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य केंद्र पर मात्र एक एंबुलेंस है. अगर उसे आने में विलंब हो जाता है तो इलाज के अभाव में उनकी मौत हो जाती है.
''पहले तो यहां की मृत्यु दर काफी ज्यादा था. लेकिन सामाजिक जागरूकता के कारण फिलहाल इसमें गिरावट आई है. यहां पर सबसे बड़ी समस्या रोजगार का है और यहां के 90% लोग दूसरे प्रदेश में जाकर रोजी रोटी कमाने का काम करते हैं. लेकिन वह उतना बचाकर नहीं ला पाते हैं कि उनके परिवार का सही से पालन पोषण हो सके''- रमन कुमार, समाजसेवी
मुसहर समाज खाली पेट के साथ पहचान और सम्मान का भी भूखा: सरकार सामाजिक जन जीवन को व्यवस्थित करने का भले ही लाख दावे करे. लेकिन आज भी हमारे बीच कुछ ऐसे जाति हैं. जिनकी जिंदगी नारकीय बनी हुई है. इसी जाति में से एक है यही 'मुसहर' जनजाति. सरकारी दावों के बीच इस समाज के लोग आज भी बदहाली में जीवन यापन करने को विवश है. ये लोग महा दलित समुदाय में आते हैं. सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए चाहे कितने ही दावे करती हो, लेकिन यहां के लोगों की जिंदगी में हर रोज एक नया संघर्ष है. जिन्दा रहने के लिए इन्हें अपनी पहचान चाहिए और समाज में सम्मान.
क्या कहते हैं जिम्मेदार अफसर: वहीं जब इस संबंध में जब हमने बिरौल अनुमंडल पदाधिकारी संजीव कुमार से बात किया तो उन्होंने कहा कि कुबोल मुसहरी टोला में कई सरकारी योजनाएं पूरी तरह से चलाई जा रही हैं हम लोगों का यही प्रयास है कि उन लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले. उसी क्रम वहां पर सामुदायिक भवन बनवाया गया है. सभी का राशन कार्ड बनावाया गया है. शत प्रतिशत लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. वहीं उन्होंने कहा कि जहां तक आवास योजना की बात है तो वहां पर सभी लोगों को इसका लाभ नहीं मिल सका है. वैसे परिवार को चिन्हित कर भविष्य में आवास योजना का लाभ दिया जाएगा.
''जितने भी साद समुदाय के लोग हैं. सभी को राशन कार्ड उपलब्ध है. तथा शत प्रतिशत लोग उनका लाभ उठा रहे हैं. गांव में आवाजाही के लिए पक्की सड़क का निर्माण किया गया है. ताकि उन्हें आने-जाने में किसी प्रकार की कठिनाई ना हो. शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए गांव में आंगनबाड़ी के साथ ही पंचायत में प्राथमिक व मध्य विद्यालय है. लेकिन बच्चों की उपस्थिति कम रहती है. इसके लिए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वहां पर जागरूकता फैलाकर बच्चों की उपस्थिति बढ़ाएं''- संजीव कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी