दरभंगा: कोरोना महामारी ने बिहार में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था(APHC of Ranipur Village) की पोल खोल कर रख दी है. राज्य के ग्रामीण इलाकों में लाखों-करोड़ों की लागत से बनाए गए अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (Additional Primary Health Center) या हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (Bihar Hospital Condition) बेकार पड़े हैं. इन भवनों को बनाकर ऐसे ही छोड़ दिया गया. न तो यहां किसी चिकित्सक की नियुक्ति हुई और न ही स्वास्थ्य कर्मी ही आते हैं.
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सालों से बंद है अस्पताल
दरभंगा जिले के सदर प्रखंड के रानीपुर गांव में करीब एक करोड़ की लागत से बने अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का हाल बेहाल है. एक तरफ कोरोना की जांच या टीकाकरण के लिए लोग जिला मुख्यालय की खाक छान रहे हैं तो दूसरी तरफ यह अस्पताल बेकार पड़ा है.
ये 1 करोड़ की लागत से बने एपीएचसी की तस्वीर है '2012 में इस एपीएचसी का उद्घाटन नगर विधायक संजय सरावगी ने किया था. इस भवन में स्वास्थ्य की कई सुविधाएं थीं, लेकिन बनने के बाद आज तक इसमें कोई डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी नहीं आया. इसकी वजह से यह बेकार पड़ा है. लोग छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज कराने के लिए भी जिला मुख्यालय जाते हैं और परेशानी झेलते हैं.'- अनिरुद्ध यादव उर्फ पन्ना, स्थानीय
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गोबर, गाइठा बढ़ा रहे अस्पताल की शोभा
बेकार पड़े इस एपीएचसी के भवन में ग्रामीणों ने गोबर, गोइठा और पशुओं का चारा रखना शुरू कर दिया है. इसका उद्घाटन 28 अक्टूबर 2012 को दरभंगा के नगर विधायक संजय सरावगी ने किया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि तब से लेकर अब तक इस अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो कोई चिकित्सक आया और न ही स्वास्थ्य कर्मी.
अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र रानीपुर में रखा जाता है पशुओं का चारा 'यह अस्पताल जब बना था तो लोगों को काफी उम्मीद थी कि गरीबों को इलाज के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा. लेकिन इसके उद्घाटन के बाद आज तक यह चालू नहीं हुआ जिसकी वजह से लोगों को काफी परेशानी होती है. सरकार हमारी मांग है कि जल्द से जल्द इस अस्पताल को चालू कराया जाए.'- लक्ष्मी यादव, स्थानीय
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'करीब एक करोड़ की लागत से एपीएचसी का यह भवन बना था. कोरोना के इस भीषण संकट काल में जब अस्पताल और दवाओं की जरूरत है तब यह हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बेकार पड़ा है. इसी वजह से लोगों ने इस पर कब्जा जमा लिया है और यहां गोबर, गोइठा और पशुओं का चारा रखा जा रहा है. अगर यहां डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी आते तो लोग इसका इस तरीके से इस्तेमाल नहीं करते.'-अमर यादव, स्थानीय
अस्पताल की दीवारों पर गोइठा 'बच सकती थी मेरे पति की जान'
वहीं, एक स्थानीय महिला मंजू देवी जिनके पति का कुछ ही दिनों पहले देहांत हुआ है, उन्होंने गहरा आक्रोश जताते हुए कहा कि अगर यहां दवा मिलती और इलाज होता तो मेरे पति की जान नहीं जाती. 2-4 दिन के बुखार ने मेरे पति की जान ले ली. ऐसे अस्पताल की क्या जरूरत जहां पर न कोई डॉक्टर है और ना ही कोई दवा देने वाला. इसलिए इस अस्पताल में लोगों ने गोबर, गोइठा और पशुओं का चारा रखना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि उनके पति की सामान्य बुखार से कुछ दिनों पहले मौत हो गई और उनको बचाया नहीं जा सका. गरीब होने की वजह से वे लोग इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल नहीं ले जा सके. इसकी वजह से उनका सहारा छिन गया.
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