दरभंगा: शहर के दिग्घी तालाब के किनारे स्थित महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय देश-विदेश की कलाकृतियों के संग्रह के मामले में महत्वपूर्ण माना जाता है. इसको देखने के लिए पूरे विश्व से दर्शक आते हैं. इस संग्रहालय में दरभंगा राज के करीब साढ़े चार सौ साल के इतिहास और राज सिंहासन को भी देखा जा सकता है. वहीं, इसमें बर्मीज और चाइनीज कलाकृतियों, बौद्ध और हिंदू धर्म से संबंधित चीजों के अलावा मिथिला की संस्कृति के भी दर्शन होते हैं.
महाराजा लक्ष्मेश्वर संग्रहालय में मिलती है मिथिला के साथ बर्मीज और चाइनीज कलाकृतियों की भी झलक - पुरातात्विक वस्तुओं के संग्रह
दरभंगा राज के शासक पुरातात्विक वस्तुओं के संग्रह के शौकीन होते थे. इसी वजह से संग्रहालय में देश-विदेश की अनेक दुर्लभ कलाकृतियां बड़े आसानी से देखने को मिल जाएगा. यहां सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई वस्तुएं भी हैं.
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संग्रहालय में है 400 साल पुरानी वस्तुएं
देश के कई जगहों पर ऐसे पुरातत्वविद संग्रहालय है जिसे देखने के लिए लोग विदेशों तक से आते हैं. वहीं, महत्वपूर्ण संग्रहालयों की बात करें तो दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय को कैसे भुला जा सकता है. यह संग्रहालय अपने आप में अनोखा स्थान रखता है. इसमें देश-विदेश की कलाकृतियों को देखा जा सकता है. आपको बता दें कि इस जगह पर आप दरभंगा राज के करीब साढ़े चार सौ साल पुराने इतिहास को और राज सिंहासन को भी देख सकते हैं. इसके अलावा बर्मीज और चाइनीज कलाकृतियों सहित यहां बौद्ध और हिंदू धर्म से संबंधित चीजों को भी देखा जा सकता है. जिनको मिथिलांचल की संस्कृति से प्यार है और वह उसको और जानना चाहता है तो यह संग्रहालय उसकी मदद करेगा.
1979 से है यहसंग्रहालय
पुरातत्वविद सुशांत भास्कर कहते हैं कि दरभंगा राज के शासक पुरातात्विक वस्तुओं के संग्रह के शौकीन होते थे. इसी वजह से यहां देश-विदेश की अनेक दुर्लभ कलाकृतियां बड़ी आसानी से देखने को मिल जाएगा. यहां सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई वस्तुएं भी हैं. वहीं, सहायक संग्रहलायाध्यक्ष चंद्र प्रकाश बताते हैं कि इसकी स्थापना दरभंगा राज से मिली वस्तुओं से की गयी थी. वर्ष 1979 में बिहार सरकार ने इसका अधिग्रहण किया. इसकी कीमती और दुर्लभ वस्तुओं को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये भी कई कदम उठाए जा रहे हैं.