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हाजीपुर से रामविलास के बिना NDA को हो सकता है नुकसान, जानें जनता की राय

रामविलास पासवान के इस बार चुनाव नहीं लड़ने के एलान के बाद से क्षेत्र में लोगों के बीच चर्चा शुरू हो गई है. पब्लिक ओपीनियन के हिसाब से अगर रामविलास चुनाव में खड़े नहीं होते हैं तो महागठबंधन को बहुत फायदा होगा. उनके परिवार का कोई भी सदस्य उतना प्रभावशाली नहीं होगा.

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Published : Mar 15, 2019, 2:23 PM IST

स्थानीय लोग

वैशाली: जिले में दो पार्लियामेंट क्षेत्र का चुनाव होना सुनिश्चित हुआ है. वहीं, अभी तक एनडीए और महागठबंधन की ओर से प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है. इसको लेकर हाजीपुर संसदीय क्षेत्र की जनता के बीच चर्चा उठने लगीं है.

स्थानीय लोगों की राय

वर्तमान सांसद व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के इस बार चुनाव नहीं लड़ने के एलान से लोग कुछ मर्माहत भी नजर आए. जनता ने यह साफ कर दिया कि यहां से रामविलास की जगह पर उनके परिवार से कोई सदस्य उम्मीदवार बनता है तो महागठबंधन की जीत पक्की मानिए.

जिले के दो पार्लियामेंट का चुनाव 29 अप्रैल उजियारपुर (पातेपुर विधानसभा) संसदीय क्षेत्र, दूसरा 6 मई को हाजीपुर सुरक्षित संसदीय क्षेत्र का चुनाव, तीसरा 12 मई को वैशाली संसदीय क्षेत्र का चुनाव होना सुनिश्चित हुआ है. इस बाबत अभी तक एनडीए और महागठबंधन से पार्टी कमान द्वारा अपने कैंडिडेट्स की घोषणा नहीं की गई है.

शहर के चौक-चौराहों से लेकर चाय की दुकानों पर जनता की मिली जुली प्रतिक्रियाएं आने से उपरोक्त नेताओं द्वारा अपनी-अपनी जीत के दावे भी किए जाने लगे है. वहीं, महागठबंधन के नेताओं में इसको लेकर मुद्दा भी बनाया जा रहा है.

जनता से बात करने पर अंदाजा होता है कि रामविलास पासवान के इस बार चुनाव नहीं लड़ने पर उनके परिवार से जो भी सदस्य आएगा वो पासवान की तरह प्रभावशाली नहीं होंगा. इससे महागठबंधन मजबूत होगा.

विदित हो कि रामविलास पासवान ने यहां से इस बार एनडीए का उम्मीदवार नहीं होने का पहले से ही एलान कर दिया है. बताते चलें कि यह सीट लोजपा की होने के कारण पासवान के ही परिवार से उनके भाई व बिहार में एनडीए की सरकार में पशुपालन मंत्री पशुपति कुमार पारस का नाम सामने आने लगा हैं.

आमलोगों के अनुसार उनका कोई राजनीतिक कद नहीं होने से यहां का समीकरण बदल सकता है. रामविलास 1977 से लगातार यहां से जीतते रहे हैं. हालांकि, उन्हें यहां से दो बार हार का स्वाद भी चखना पड़ा है.

एक बार वह कांग्रेस के रामरतन राम से हारे थे जबकि दूसरी हार पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास से 2009 को खानी पड़ी थी. मालूम हो कि पूर्व में पासवान ने एक बार यहां से चुनाव नहीं लड़कर रोसड़ा लोकसभा संसदीय क्षेत्र से चुनाव 1994 में लड़ा था. इसमें उन्हें जीत भी मिली थी.

बताते चलें कि उसी दौरान पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास ने हाजीपुर से सर्वप्रथम जीत हासिल की थी. 1969 में खगड़िया जिले के अलौली विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल करने वाले पासवान 1977 में हाजीपुर लोकसभा चुनाव से जीतकर पहली बार सांसद बने. उसके बाद वे 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 2000, 2005 और 2014 में जीते.

उन्होंने अपने हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में रेलवे का जोनल कार्यालय, सिपेट, होटल मैनेजमेंट, नाइपर, टीटीएम, पासपोर्ट कार्यालय, एफसीआई मंडल, दिघा रेलवे ओवर ब्रिज जैसे कार्य को स्वरूप देकर अपनी उपलब्धि गिनवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

गठबंधन से कांग्रेस की ओर से संजीव कुमार टोनी, पूनम पासवान, पूर्व मुख्यमंत्री की बहू प्रतिमा दास, पूर्व डीजीपी छत्तीसगढ़ संतलाल पासवान, वहीं राजद से पूर्व मंत्री व जिले के राजा पाकड़ विधानसभा के राजद एमएलए और पातेपुर की एमएलए प्रेमा चौधरी के नाम हाजीपुर संसदीय क्षेत्र के लिए चर्चा में आ रही हैं.

अब एक दो दिन में दोनों पार्टी के हाईकमान से प्रत्याशियों की घोषणा भी होने की काफी गुंजाइश बढ़ गई है. हालांकि बीजेपी, लोजपा और जदयू के नेताओं की मानें तो जीत फिर भी एनडीए की ही होगी.

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