पटना: बिहार में सत्ताधारी एनडीए के दो प्रमुख दलों बीजेपी और जेडीयू ने इस बार लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों को टिकट देने में नई सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया है. बिहार में जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने जहां अगड़ी जाति के ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट दिया है, तो वहीं जेडीयू ने पिछड़े और अति पिछड़े से ज्यादा उम्मीदवार खड़े किए हैं.
जातीय समीकरण के मुताबिक टिकट बंटवारा
बीजेपी ने पारंपरिक वोट बैंक के मद्देनजर ऊंची जाति के 11 उम्मीदवारों को खड़ा किया है. इन 11 में पांच राजपूत, दो ब्राह्मण, दो वैश्य, एक भूमिहार और एक कायस्थ समुदाय से हैं. पार्टी ने अन्य पिछड़ा वर्ग से तीन और अति पिछड़ा वर्ग से दो और जनजाति वर्ग से एक उम्मीदवार उतारे हैं.
जेडीयू ने पिछड़ी जातियों को दिया ज्यादा मौका
जेडीयू की बात करें तो पार्टी ने ज्यादातर अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग से उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य में इनकी आबादी करीब 50 फीसदी है. इसी तरह जनजाति की आबादी 15.7 फीसदी है. इसके अलावा मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे गए हैं.बिहार में मुस्लिम और यादव की आबादी करीब 32 फीसदी है. ऐसा माना जाता है कि इनकी सहानुभूति लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल से है.
बीजेपी ने अगड़ों को दिया टिकट
एनडीए की सूची पर गौर करें तो कुल ऊंची जाति से 13 उम्मीदवार, अन्य पिछड़ा वर्ग से नौ, अति पिछड़ा वर्ग से आठ, जनजाति वर्ग से तीन उम्मीदवार मैदान में हैं. जेडीयू ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है.
महागठबंधन के जातीय समीकरण की काट
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एनडीए ने महागठबंधन के जातीय समीकरण की काट के लिए समाज के सभी वर्ग के लोगों को टिकट दिया है. बीजेपी को अगड़ी जातियों के पारंपरिक वोट बैंक मिलने का भरोसा है. इसके साथ ही जेडीयू के साथ की वजह से अन्य पिछड़ा वर्ग में यादव को छोड़कर कुर्मी एवं अन्य समुदायों के वोट मिलने की भी उम्मीद जतायी जा रही है.