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लोकसभा चुनाव: बिहार में कितनी कारगर होगी NDA की सोशल इंजीनियरिंग? - caste equation

एनडीए के नेताओं ने सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल कर टिकट बांटा है. बीजेपी ने अगड़ी जाति के ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट दिया है, तो जेडीयू ने पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय से ज्यादा उम्मीदवार खड़े किए हैं.

एनडीए गठबंधन

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Published : Apr 15, 2019, 5:26 PM IST

Updated : Apr 15, 2019, 5:41 PM IST

पटना: बिहार में सत्ताधारी एनडीए के दो प्रमुख दलों बीजेपी और जेडीयू ने इस बार लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों को टिकट देने में नई सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया है. बिहार में जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने जहां अगड़ी जाति के ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट दिया है, तो वहीं जेडीयू ने पिछड़े और अति पिछड़े से ज्यादा उम्मीदवार खड़े किए हैं.

जातीय समीकरण के मुताबिक टिकट बंटवारा
बीजेपी ने पारंपरिक वोट बैंक के मद्देनजर ऊंची जाति के 11 उम्मीदवारों को खड़ा किया है. इन 11 में पांच राजपूत, दो ब्राह्मण, दो वैश्य, एक भूमिहार और एक कायस्थ समुदाय से हैं. पार्टी ने अन्य पिछड़ा वर्ग से तीन और अति पिछड़ा वर्ग से दो और जनजाति वर्ग से एक उम्मीदवार उतारे हैं.

जेडीयू ने पिछड़ी जातियों को दिया ज्यादा मौका
जेडीयू की बात करें तो पार्टी ने ज्यादातर अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग से उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य में इनकी आबादी करीब 50 फीसदी है. इसी तरह जनजाति की आबादी 15.7 फीसदी है. इसके अलावा मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे गए हैं.बिहार में मुस्लिम और यादव की आबादी करीब 32 फीसदी है. ऐसा माना जाता है कि इनकी सहानुभूति लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल से है.

बीजेपी ने अगड़ों को दिया टिकट
एनडीए की सूची पर गौर करें तो कुल ऊंची जाति से 13 उम्मीदवार, अन्य पिछड़ा वर्ग से नौ, अति पिछड़ा वर्ग से आठ, जनजाति वर्ग से तीन उम्मीदवार मैदान में हैं. जेडीयू ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है.

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महागठबंधन के जातीय समीकरण की काट
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एनडीए ने महागठबंधन के जातीय समीकरण की काट के लिए समाज के सभी वर्ग के लोगों को टिकट दिया है. बीजेपी को अगड़ी जातियों के पारंपरिक वोट बैंक मिलने का भरोसा है. इसके साथ ही जेडीयू के साथ की वजह से अन्य पिछड़ा वर्ग में यादव को छोड़कर कुर्मी एवं अन्य समुदायों के वोट मिलने की भी उम्मीद जतायी जा रही है.

अगड़ी-पिछड़ी जातियों का बैलेंस बनाने की कवायद
एनडीए के एक नेता ने कहा कि भाजपा और जेडीयू अति पिछड़ा वर्ग और जनजाति पर भी फोकस कर रही है, जिसकी आबादी करीब 30 फीसदी और 15.7 फीसदी है. उनका कहना है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास पुरुष की छवि और सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस कर रहे हैं.

कई बड़े चेहरे शामिल
एनडीए में बीजेपी की ओर से राजपूत में राधामोहन सिंह मोतिहारी से, आर.के.सिंह आरा से, राजीव प्रताप रूडी सारण से, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल महाराजगंज से और सुशील कुमार सिंह औरंगाबाद से चुनावी मैदान में हैं.

जदयू ने भी दिया मौका
भूमिहार समुदाय से गिरिराज सिंह बेगूसराय से, राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुंगेर से और चंदन कुमार नवादा से चुनाव लड़ रहे है. ब्राह्मण समुदाय की बात करें तो अश्विनी कुमार चौबे बक्सर से, गोपालजी ठाकुर दरभंगा से मैदान में हैं. केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद कायस्थ समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और पटना साहिब से उम्मीदवार हैं.

इस बार बदले हैं समीकरण
राज्य में भाजपा और जदयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, वहीं एलजेपी बाकी छह सीटों पर चुनाव लड़ेगी. एनडीए ने 2014 में 40 में से 31 सीटें जीती थी. भाजपा ने 22, एलजेपी 6, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को तीन सीटें मिली थीं. इस बार लोक समता पार्टी महागठबंधन का हिस्सा है. जदयू पिछली बार एनडीए का हिस्सा नहीं थी और उसे केवल पूर्णिया और नवादा दो सीटों पर ही जीत मिली थी.

चुनाव परिणामों का इंतजार
एनडीए का यह सोशल इंजीनियरिंग इस बार चुनाव में प्रदेश की सभी 40 सीटों पर महागठबंधन के खिलाफ कितना सफल होता है यह तो चुनाव परिणाम ही बताऐंगे. महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, हम और आरएलएसपी शामिल हैं.

Last Updated : Apr 15, 2019, 5:41 PM IST

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