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अटल जी की जयंती पर विशेषः जानिए क्यों वे खुद को कहते थे 'बिहारी'

राजनीति के अजातशत्रु पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को पूरा देश नमन कर रहा है. उनकी जयंती के मौके पर लोग उन्हें याद कर रहे हैं. क्या आप जानते हैं अटल जी खुद को बिहारी कहते थे. उनका मानना था कि उनके नाम में ही बिहारी लगा है. चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत भी वे बिहार से ही किया करते थे. उनकी जयंती के मौके पर पढ़िये, बिहार से उन्हें क्यों था खास लगाव.

अटल जी की जयंती पर विशेषः
अटल जी की जयंती पर विशेषः

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Published : Dec 25, 2022, 5:35 PM IST

अटल जी की जयंती पर विशेष.

पटना : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज रविवार को 98 वीं जयंती है. इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पूरा देश नमन कर रहा है. 25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटल बिहारी बाजपेयी को तीन बार भारत का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. अटल बिहारी बाजपेयी का बिहार से खासा लगाव था. वे खुद को बिहारी कहते थे. कहते थे कि 'मैं पहले बिहारी हूं फिर अटल हूं' बिहार से उनका इतना लगाव था कि वह चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत बिहार से किया करते थे.

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लाल मुनी चौबे से करीबी रिश्ता थाः बक्सर के पूर्व सांसद लाल मुनी चौबे से उनका करीबी रिश्ता था. लोकसभा चुनाव में बिहार के बक्सर सीट पर अटल बिहारी का उम्मीदवार होता था. उनकी पसंद लाल मुनी चौबे थे. भगवान राम की कर्मभूमि बक्सर से अटल बिहारी बाजपेयी चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करते थे. अटल जी की पहली चुनावी सभा बक्सर में होती थी. बक्सर के बाद ही अटल जी का चुनावी अभियान शुरू होता था. भाजपा प्रवक्ता संजय टाइगर अटल बिहारी बाजपेयी को देश का महान सपूत मानते हैं.

सब को साथ लेकर के चलने की क्षमताः संजय टाइगर ने कहा कि अटल जी राजनीति के अजातशत्रु थे. उनका सम्मान पक्ष और विपक्ष दोनों खेमे में थी. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार थे. अच्छे राजनेता होने के साथ-साथ कुशल प्रशासक और कवि भी थे. कई दलों के गठबंधन की सरकार कैसे चलाई जाए इसकी रूपरेखा भी अटल जी ने तय की थी. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना उनकी दूरदर्शिता का परिचय है. भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम रंजन पटेल अटल बिहारी वाजपेयी को युगपुरुष की संज्ञा देते हैं. उनका मानना है कि अटल जी में सब को साथ लेकर के चलने की क्षमता है.


सुचिता को सबसे ऊपर रखते थेः राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार का मानना है कि अटल बिहारी बाजपेयी की प्रासंगिकता आज सबसे ज्यादा है. आज की तारीख में राजनीतिक दलों ने सुचिता को ताक पर रख दिया जबकि अटल बिहारी वाजपेयी सुचिता को सबसे ऊपर रखते थे. सांसदों की खरीद बिक्री कर सरकार बनाने के बिल्कुल खिलाफ थे. लेकिन आज के हालात में सांसदों और विधायकों की खरीद बिक्री आम बात हो गई है. राजनीतिक दलों ने इसे शिष्टाचार बना दिया है. जरूरत इस बात की है कि जिन मूल्यों को लेकर अटल जी आगे बढ़े थे उसे लोग अपनाएं.

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बाजपेयी की उपलब्धिः राजनीतिक जीवन में अटल जी ने सुचिता और नैतिकता का पालन किया वह भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में थे 1968 से 1973 तक अटल बिहारी बाजपेई जन संघ के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने राष्ट्रधर्म पंचजन्य वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया. चार दशक तक भारत की राजनीति के केंद्र में रहने वाले अटल बिहारी बाजपेयी ने अपनी वाकपटुता से विरोधियों का भी दिल जीतने का काम किया .अटल बिहारी बाजपेयी 10 बार लोकसभा के लिए चुने गए दो बार उन्हें राज्यसभा जाने का अवसर मिला. आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने वाले अटल बिहारी बाजपेयी पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.

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