बक्सर: बिहार के बक्सर जिले में गंगा में शव (Bodies floating in river Ganga in Buxar) मिलने के बाद से नदी के दूषित होने की अफवाहों ने मछुआरों और नाविकों (Fisherman) के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया है. आज उनका परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज है. बता दें कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बीते 10 मई को जिले के चौसा प्रखण्ड अंतर्गत महदेवा गंगा घाट एवं उत्तरप्रदेश के गाजीपुर और बलिया जिले के गंगा घाटों से सैकड़ों लाशें बरामद हुई थीं.
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नाविकों ने ईटीवी भारत से बयां किया दर्द
गंगा नदी के जल में वायरस होने की उड़ रही अफवाहों को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने रामरेखा घाट पहुंचकर हालात का जायजा लिया. ईटीवी भारत से नाविकों ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि गंगा नदी पर आश्रित नाविक, मछुवारे, पंडा एवं पुजारी के सामने रोजी-रोटी का संकट हो गया है. बाजार में कोई मछली का खरीददार तक नहीं मिल रहा है. पिछले 2 सालों से लॉकडाउन लग रहा है. अनलॉक होने के बाद भी जिला प्रशासन द्वारा गंगा नदी में बोट परिचालन की अनुमति नहीं मिली है.
आमदनी के सारे रास्ते बंद
नाविक परशुराम मल्लाह ने बताया कि साल 2020 में ही बिटिया का विवाह तय किया था. लेकिन लॉकडाउन लग जाने के कारण आमदनी के सारे रास्ते बंद हो गये और आर्थिक स्थिति खराब हो गई. इस साल बिटिया का विवाह का दिन तय किया था. लेकिन इस बार भी लॉकडाउन लग जाने के कारण भुखमरी की स्थिति हो गई है. घर की औरतें खेतों में जाकर मजदूरी कर रही हैं, जिससे किसी तरह परिवार की भूख मिट रही है.
'जब कोरोना काल में लोग अपनी संतानों, माता-पिता के शवों का भी अंतिम संस्कार करने से परहेज कर रहे थे. उस संकट की घड़ी में हम लोगों ने गंगा से लावारिश लाशों को निकालकर अंतिम संस्कार कराया. जिला प्रशासन के अधिकारियों के द्वारा सभी लाशों को गंगा नदी से निकालकर अंतिम संस्कार करने पर प्रतिदिन 700 रुपये के हिसाब से बोट का किराया एवं मजदूरी देने की बात कही गई थी. 11 मई से लेकर 2 जून तक लगातार जिला प्रशासन के अधिकारियों के द्वारा काम लिया गया. इसके एवज में मात्र एक हजार रुपये का ही भुगतान किया गया. लेकिन अभी तक मजदूरी का पैसा लेने के लिए सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.':- परशुराम मल्लाह, नाविक