बक्सर:बक्सर में किसानों (Farmers Of Buxar) की मुश्किलें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. पहले धान की बालियों पर कीटों का प्रकोप और अब एक ऐसी बीमारी (Unknown Disease In Crops ) से फसलों का सामना हो रहा है, जिसके कारण बालियों में दानें आने से पहले ही फसल सुखने लगी है. किसानों ने कृषि विभाग के अधिकारियों से लेकर जिला प्रशासन तक से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी ने भी इनकी सुध नहीं ली.
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90 हजार हेक्टेयर भूमि पर जिले के 1 लाख 42 हजार रजिस्टर्ड किसानों ने धान की फसल लगाई है.लेकिन किसानों की फसल अज्ञात बीमारी की चपेट में आने से बर्बाद हो रही है. सितम्बर माह में ईटीवी भारत के द्वारा प्रमुखता से खबर दिखाए जाने के बाद कृषि विभाग के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र का भ्रमण कर किसानों का हाल जाना था. किसानों को दवा का छिड़काव करने की सलाह दी गई थी लेकिन उनके द्वारा बताई गई दवा का छिड़काव करने के बाद भी बीमारी दूर नहीं हुई.
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सितम्बर माह के शुरूआत में ही जिले के सदर प्रखंड के जगदीशपुर, बोक्सा, और महदह पंचायत के खेतों में लगी फसल पर जब इस बीमारी ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया था, तो ईटीवी भारत के द्वारा प्रमुखता से इस खबर को दिखाया गया था. जिसके बाद जिलाधिकारी के निर्देश पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने ग्रामीण इलाके में जाकर किसानों को उपचार का उपाय बताया था. उस दौरान इस बीमारी का नाम झुलसा, गलका, मधुवा बताया गया था.
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8 दिन में 2 बार दवा का छिड़काव करने की बात कहकर वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों ने अपना कोरम जरूर पूरा कर लिया. लेकिन किसानों की परेशानी कम नहीं हुई है. हथिया नक्षत्र समाप्त होने के बाद भी फसल में बाली नहीं आई और जिस फसल में बाली आई उसमें दाना ही नहीं आया है, जिससे किसान परेशान हैं.
सदर प्रखंड अंतर्गत जगदीशपुर पंचायत के कुल्हड़िया गांव के किसान बिहारी यादव ने बताया कि, धान की फसल में बाली आने से पहले ही फसल सूखने लगी है.
"कृषि विभाग के अधिकारियों और वैज्ञानिकों के द्वारा जो दवा छिड़काव करने के लिए कहा गया था, उस दवा का छिड़काव भी किए. उसके बाद भी फसल नहीं बच पाई. यदि सरकार ने कोई सहयोग नहीं किया तो बच्चों की पढ़ाई से लेकर दवाई तक के लिए कर्ज लेना पड़ेगा."- बिहारी यादव, किसान
जिले के परेशान किसानों के समर्थन में उतरे राजद जिला अध्यक्ष शेषनाथ यादव ने कहा कि देश और प्रदेश में चल रही डबल इंजन की सरकार ही हास्यास्पद है. यदि किसान इस देश के लिए वरदान नहीं होते तो सरकार उनको मिटा दी होती.
"हालात यह है कि एयर कंडीशन कमरे में बैठकर जिला कृषि पदाधिकारी फतवा जारी कर रहे हैं. किसान 200 रुपये बोरी की यूरिया 500 रुपये में खरीद रहे हैं. फसलें सूख रही हैं और सरकार दोगुनी आमदनी की बात कर रही है. पूरे देश का यही हाल है. अपनी मांगों को लेकर किसान सड़क पर है, और सरकार चैन की बंसी बजा रही है."-शेषनाथ यादव, राजद जिलाध्यक्ष
खरीफ फसल बर्बाद होने से किसानों को समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें. अन्नदाताओं के लिए सरकारी स्तर पर फसल क्षतिपूर्ति और अन्य योजनाओं का लाभ देने के कई वादें तो किए जाते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है.बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश में किसानों के हालात काफी गंभीर है. यदि मेरी सरकार बनी तो किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारा जाएगा. साथ ही किसानों की आमदनी दोगुनी की जाएगी. सरकारी योजनाओं को किसानों के खेत तक पहुंचाया जाएगा.
हैरानी की बात है कि देश में एनडीए की सरकार पिछले 7 वर्षों से चल रही है. उसके बाद भी न तो किसानों के हालात बदले और ना ही खेतों तक योजनाएं पहुंची.आलम यह है कि आज भी सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए किसानों को महीनों सरकारी कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता हैं उसके बाद भी उनको उस योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। और कागजों पर अधिकारी दलील देते हैं.