बक्सर : धार्मिक और पौराणिक इतिहास के नजरिए से महत्वपूर्ण बिहार के बक्सर (Buxar) जिले को छोटी काशी भी कहा जाता है. महर्षि विश्वामित्र की नगरी और भगवान श्रीराम की पाठशाला के रूप में पहचान रखने वाले बक्सर में पर्यटन विकास की असीम (Possibilities of Tourism in Buxar) संभावनाएं हैं. इसके बावजूद यहां की ऐतिहासिक धरोहर बिखरती नजर आ रही है. बिहार सरकारके पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन का इस ओर ध्यान नहीं है.
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बक्सर जिले के पौराणिक इतिहास
26 जून 1539 और 23 अक्टूबर 1764 को बक्सर कि भूमि पर हुए दो युद्धों का जिक्र आज भी भारतीय इतिहास के पन्नो में पूरे प्रमाण के साथ दर्ज हैं. पूरी दुनिया जानती है कि बक्सर के इन दो युद्धों के बाद भारत में शासन परिवर्तन हुआ था. बक्सर का प्रथम युद्ध अफगान शासक शेरशाह सूरी और हुमायुं के बीच लड़ा गया. इस युद्ध में मुगल सम्राट हुमायुं को हराकर शेरशाह ने भारत में पहली बार अफगानों की हुकूमत स्थापित की थी.
बक्सर में हुआ द्वितीय युद्ध
बक्सर का द्वितीय युद्ध ब्रिटिश सेना और संयुक्त भारतीय सेनाओं के बीच लड़ी गई. दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह तथा बंगाल और अवध के संयुक्त सेनानियों के बीच लड़े गए इस युद्ध में अंग्रेजों द्वारा भारतीय सेनाओं के पराजित हो जाने के पश्चात ये तय हो गया कि भारत में अब शासन की बागडोर अंग्रेजों के हाथ में ही रहेगी. ईटीवी भारत का मकसद यहां भारतीय इतिहास को बताना नहीं बल्कि बक्सर की बिखरती विरासत से रूबरू कराना है. जिले के ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए ध्यान आकृष्ट कराना है.
बिहार सरकार की अनदेखी
ऐसे में Etv भारत ने बिहार विरासत समिति के सदस्य व डुमरांव विधायक अजित कुमार सिंह से खास बातचीत की. अजित कुमार सिंह ने बताया कि विरासत सूची में जिसमें कि कुल 48 धरोहरों के नाम थे. बक्सर के किसी भी ऐतिहासिक व आध्यात्मिक विरासत का नाम नहीं था. किसी तरह मैंने चौसा लड़ाई मैदान और राजा भोज के नवरतन गढ़ के किले का नाम दर्ज करवाया. विरासत समिति के सदस्य अजित सिंह ने माना कि बक्सर में पर्यटन की असीम संभावनाओं के सारे तत्व मौजूद हैं. इसे एक बेहतरीन पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता था किंतु शासकीय अनदेखी के कारण ऐसा नहीं हुआ.