बक्सर: जिले का नाम दिमाग में आते ही कई सवाल एक साथ घुमने लगते हैं. यहां पर कई ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर हैं. इन धरोहरों में से एक है बक्सर युद्ध का मैदान. भारतीय इतिहास को बदल कर रख देने वाला यह मैदान आज खुद अपनी बदहाली से जंग लड़ रहा है. ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के बावजूद ये स्थल काफी उपेक्षित रहे हैं. इसको लेकर जिला प्रशासन की देर से ही सही लेकिन आंखे खुली है. जिला प्रशासन जिले के दोनों युद्ध के मैदान को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने को लेकर कवायद शुरू कर दी है.
बक्सर में हुए थे दो ऐतिहासिक युद्ध
जिले में दो-दो ऐतिहासिक निर्णायक युद्ध हुए थे. इन युद्धों ने आने वाले भारत की दशा और दिशा तय कर के रख दी थी. पहली लड़ाई चौसा में हुई थी. चौसा का परिचय महान भारतीय संत च्यवन मुनि के नाम से जाना जाता है. वर्तमान समय में बक्सर के कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक एक छोटा गांव बसा हुआ है. 27 जून 1539 को यहां पर हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच युद्ध हुआ था. चौसा के पास युद्ध होने के कारण इसका नाम चौसा की लड़ाई के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में हुमायूं बुरी तरह पराजित हुआ और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था. चौसा के युद्ध के बाद शेरशाह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया और उसने 'सुल्तान- ए-आदिल' की उपाधि धारण की. वहीं, हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए घोड़े के साथ गंगा में कूद पड़ा और एक भिश्ती की मदद से डूबने से बच गया.