बक्सर:बिहार मेंसरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था (Government Schools in Buxar) किसी से छुपी हुई नहीं है. सरकार हमेशा शिक्षा में सुधार के दावे करती नजर आती है. लेकिन इन दावों को आइना दिखा रहा है, बिहार के बक्सर के डुमरांव अंचल का प्राथमिक विद्यालय महरौरा, जहां मात्र दो कमरे हैं. दोनों कमरे जर्जर हो चुके हैं, जिसके कारण खुले आसमान के नीचे जाड़े, गर्मी, बरसात में कक्षाएं लगती हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे गरीब मजदूर परिवार से आते हैं. 2 कमरे वाले इस स्कूल में प्रतिदिन 300 बच्चे नियमित रूप से पढ़ने के लिए आते हैं. उसके बाद भी सरकारी उदासीनता के कारण 5 सालों में भी भवन बनकर तैयार नहीं हो सका है.
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मध्याह्न भोजन, साइकिल, स्कूल ड्रेस, छात्रवृत्ति सहित तमाम योजनाओं के माध्यम से बच्चों को विद्यालय की ओर खींचने की कोशिश तो हुई, लेकिन वो शिक्षा के असल उद्देश्य यानि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के मामले में पूरी तरह नाकाम रही है. इसका बड़ा कारण इस व्यवस्था की रीढ़ शिक्षकों की अनदेखी है.
सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कागजों पर भले ही लाख दावा कर ले, लेकिन इसकी जमीनी सच्चाई बेहद डरावनी है. अधिकांश सरकारी स्कूल सालों से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं, तो कई स्कूलों से मास्टर साहब महीनों से गायब हैं. दो-चार शिक्षकों की तैनाती में अधिकांश डाटा संग्रह और भोजन बनवाने में व्यस्त रह जाते हैं. ऐसे में सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले बच्चे अपने बेहतर भविष्य का निर्माण कैसे कर पाएंगे.
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