औरंगाबाद: जिले में धान मुख्य फसलों में शुमार है. यहां खेती के रकबे से 1 लाख 54 हजार हेक्टेयर जमीन में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन इस बार जिले में धान की खेती पिछड़ने की संभावना है और इसका कारण है नहरों में पानी का अभाव. बताया जाता है कि मध्य प्रदेश स्थित बाणसागर से पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं छोड़े जाने के कारण इंद्रपुरी बराज में पानी नहीं पहुंचा है. जिसके कारण नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया है. हालांकि अधिकारी बताते हैं कि जून के पहले पखवाड़े तक पानी छोड़ दी जाएगी.
धान के बिचड़े लगाने का सीजन बीता जा रहा है, लेकिन अभी नहरों में पानी नहीं है. रोहिणी नक्षत्र जिसमें मुख्य रूप से धान के बिचड़े लगाए जाते हैं, इसके 6 दिन बीत चुके हैं. किसान अभी भी आसमान और नहर की ओर देख रहे हैं. नहरों में पानी नहीं है, नाले और खेत भी सूखे हुए हैं.
बराज में नहीं है पानी
इस संबंध में सिंचाई विभाग के दाउदनगर प्रमंडल के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर उमेश कुमार मुखिया ने बताया कि अभी इंद्रपुरी बांध में पानी नहीं है. पानी नहीं होने के कारण नहरों में पानी नहीं छोड़ा जा सकता. उन्होंने बताया कि बाणसागर बांध से जब पानी छोड़ा जाएगा उसके बाद ही इंद्रपुरी बराज में पानी आएगा और उसके बाद ही पानी नहरों में छोड़ा जाएगा. नहरों में पानी आने के बाद किसान अपने खेतों में पानी का उपयोग कर बिछड़ा उगाएंगे.
धान की रोपनी पिछात होने का डर
किसान श्याम सुंदर सिंह बताते हैं कि बिछड़ा उगाने का रोहिणी नक्षत्र सबसे सटीक नक्षत्र है. जो मुख्यतः मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जून के प्रथम सप्ताह के बीच में होता है. लेकिन इस दौरान खेत को तैयार करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है जो कि नहीं है. नहरों में पानी नहीं होने के कारण किसान रोहिणी नक्षत्र में संभवत बिछड़ा नहीं उगा पाएंगे. बिछड़ा नहीं उगाने की स्थिति में धान की खेती 15 दिन तक पीछे हो जाने का अनुमान है. धान की खेती अगर पिछात होती है तो उसका असर उसके उत्पादन पर पड़ता है. यही नहीं इससे अगले रबी की फसल भी प्रभावित होती है.
नहरी क्षेत्र होने के कारण खेतों में नहीं है पम्पसेट
जिले के अधिकांश जमीन नहरी होने के कारण किसानों ने खेतों में पम्पिंग सेट की व्यवस्था नहीं की है. जहां पम्पिंग सेट होती है वहां के किसान बोरिंग के माध्यम से अपने बिचड़े उगा लेते हैं और नहर में पानी आने के समय खेतों की रोपाई शुरू कर देते हैं. नहरी क्षेत्रों में किसान खेतों में पम्पिंग सेट नहीं रखते हैं. यही कारण है कि इस बार धान की खेती नहर पर आश्रित होने के कारण पिछड़ने की संभावना है.