औरंगाबादः शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही आखिरी निशां होगा. ये शायरी शहीद जगतपति कुमार पर पूरी तरह से चरितार्थ हो रहा है. महात्मा गांधी के आह्वान पर साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कूदकर अपनी जान गंवाने वाले शहीद जगतपति कुमार अपने ही जिले में उपेक्षित हैं. शहादत के 78 वर्ष बाद भी जिले में उनके नाम पर ना कोई स्कूल है, ना ही कॉलेज और ना ही किसी भवन का ही नामकरण उनके नाम पर किया गया है.
11 अगस्त 1942 को हुए थे शहीद
वह दौर भारत छोड़ो आंदोलन का था. जब महात्मा गांधी के आह्वान 8 अगस्त 1942 की शाम से देशभर में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी. पटना में अनुग्रह नारायण सिंह और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इनकी गिरफ्तारी के बाद छात्रों में आक्रोश बढ़ने लगा था. इस दौरान पटना में पढ़ाई कर रहे छात्रों ने तय किया कि वे पटना स्थित सचिवालय पर तिरंगा फहराएंगे और अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करेंगे. तिरंगा फहराने के दौरान ही एक-एक करके 7 छात्र मारे गए. लेकिन छात्रों ने मरते-मरते पटना सचिवालय पर तिरंगा लहरा दिया था.
स्वतंत्रता सेनानी रामजन्म पांडे पढ़ने गए थे पटना
शहीद जगतपति कुमार का जन्म 7 मार्च 1923 को तत्कालीन गया जिले के खरांटी गांव में हुआ था. जो वर्तमान में औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के अंतर्गत आता है. इनके पिता का नाम सुखराज बहादुर तथा माता का नाम सोना देवी था. सुखराज बहादुर उस इलाके के प्रतिष्ठित जमींदार थे. इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई थी. लेकिन 1932 में इनके पिताजी उच्च शिक्षा के लिए इन्हें पटना भेज दिए थे. जगतपति पटना में पटना कॉलेजिएट स्कूल से 1938 में मैट्रिक पास किया और बिहार नेशनल कॉलेज में सेकेंड ईयर के छात्र थे. जगतपति कुमार 3 भाई थे और अपने 3 भाइयों में सबसे छोटे थे.
मृत्यु की खबर सुनकर रोते-रोते पिता हो गए थे अंधे
शहीद जगतपति के घर रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामजन्म पांडे बताते हैं कि जगतपति बचपन से ही क्रांतिकारी थे. वे हमेशा क्रांति की ही बात किया करते थे. वे सुभाष चंद्र बोस के साथ जापान भी गए थे. उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर पटना सचिवालय पर झंडा फहराने की कोशिश की थी. तब अंग्रेजों ने उनके पैर में गोली मारी, फिर भी जगतपति आगे बढ़ते गए और अंग्रेजों को ललकारते हुए कहा कि पैर में क्या गोली मारते हो मारना है तो सीने में मारो. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें सीने में गोली मार दी. वहीं उनकी शहादत की खबर सुनकर पिता सुखराज बहादुर रोते-रोते अंधे हो गए थे.
सरकारी उपेक्षा के हैं शिकारशहीद जगतपति कुमार के नाम पर भारत सरकार ने एक स्मारक भी नहीं बनाया था. उनके गांव में स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों ने चंदा करके 1976 में पुनपुन नदी के तट पर उनका स्मारक बनवाया. उसके बाद 1998 में स्थानीय विधायक कामरेड राजाराम सिंह ने एक छोटा सा पार्क का निर्माण कराया था, जो जगतपति के भाई ने जमीन दान में दी थी. बिहार सरकार की ओर से उनके नाम पर कुछ भी नहीं कराया गया है. ना ही जिले में कोई भी स्कूल है और ना ही कॉलेज उनके नाम पर है और ना ही कोई भवन. शहीद जगतपति कुमार को जो सम्मान मिलना चाहिए था. वह सम्मान अब तक नहीं मिल सका है. मकान हो गए हैं खंडहर
शहीद जगतपति कुमार जो भारत माता की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए अपने प्राण हंसते-हंसते न्योछावर कर दिया था. आज उनकी हवेली खंडहर में बदल चुकी है. उनके घर में कोई रहने वाला नहीं है. जगतपति कुमार के अन्य भाई जोकि न्यायाधीश जैसे पदों पर रहे हैं वे गांव में नहीं रहते हैं.
स्वतत्रता सेनानी राम जन्म पांडे बताते हैं कि जगतपति बाबू अपनी शहादत का जो कर्ज भारतवासियों पर देकर चले गए हैं. उस कर्ज को उतारने का प्रयास कभी सरकार ने नहीं किया. सरकार ने उनके नाम को कोई पहचान नहीं दी. स्थानीय लोग चाहते हैं कि उनके खंडहर हुए मकान को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए और जगतपति कुमार और 7 शहीदों से संबंधित जानकारी को संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाए.
शहीदों की सूची
- उमाकांत प्रसाद सिंह उर्फ रमन जी, राम मोहन रॉय सेमिनरी स्कूल, कक्षा 9, नरेंद्रपुर, जिला सारण
- रामानंद सिंह, राम मोहन रॉय सेमिनरी स्कूल, कक्षा 9, शहादत नगर, धनरूआ, जिला पटना,
- सतीश प्रसाद झा, पटना कॉलेजिएट स्कूल, कक्षा 10 खड़हारा, जिला भागलपुर,
- जगतपति कुमार, बिहार नेशनल कॉलेज, द्वितीय वर्ष, खरांटी, जिला औरंगाबाद,
- देवीपद चौधरी, मिलर हाई स्कूल, कक्षा 9, सिलहर, जमालपुर,
- राजेंद्र सिंह, पटना अंग्रेजी हाई स्कूल, मैट्रिक, बनवारी चक नयागांव, जिला सारण,
- राम गोविंद सिंह, पुनपुन अंग्रेजी हाई स्कूल, मैट्रिक, दशरथा, जिला पटना.