औरंगाबादः ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सुबह किसी के मुंडेर पर कौवा बोलता है तो इसे किसी अतिथि के आने का संकेत समझा जाता है. लेकिन गांवों में अब कौवे बहुत कम दिखने लगे हैं. इनकी घटती आबादी को देख राधेश्याम कौवों को बचाने की अनोखी पहल कर रहे हैं. वह पिछले 15 वर्षों से कौवे को खाना खिला रहे हैं. उनकी एक आवाज पर दाना चुगने सैकड़ों कौए आ जाते हैं.
राधेश्याम प्रसाद औरंगाबाद जिले के कसेरा टोली में रहते हैं. वे पिछले 15 वर्षों से पक्षी प्रेम की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. हर सुबह उनकी एक आवाज पर सैकड़ों की संख्या में कौवे दाना चुगने के लिए आते हैं. स्थानीय लोगों में राधेश्याम का पक्षी प्रेम चर्चा का विषय है.
15 सालों से कौओं को खिला रहे दा भारत में हैं कौवे की 8 प्रजातियां
कौआ कोविडी परिवार का पक्षी है. यह भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार के साथ ही विश्व के अनेक देशों में पाया जाता है. भारत में इसकी 8 प्रजातियां देखने को मिलती हैं. इसमें पहाड़ी कौवे, जंगली कौवे और घरेलू कौआ प्रमुख है. पहाड़ी कौवे आकार में सबसे छोटे होते हैं. इसकी लंबाई लगभग 10 इंच होती है और शरीर का रंग चमकीला काला होता है. पहाड़ी कौवे के गले में भूरे रंग की एक पट्टी होती है जिसकी सहायता से सरलता से पहचाना जा सकता है.
लगातार घट रही है कौवों की संख्या
पक्षी विशेषज्ञ डॉ चन्दन कुमार बताते हैं कि भारतीय जनमानस में कौवा का गहरा प्रभाव है. यह एक समझदार पक्षी और प्रशिक्षण देने पर मनुष्य की नकल कर सकता है. अब पीपल, बरगद, नीम, पाकड़ आदि जैसे पेड़ समाप्त हो रहे हैं. ऊंची इमारतों की छत पर लगे टीवी एंटीना के कोने पर अब कौवे नहीं बैठते. मोबाइल टावर, इनसे निकलने वाली तरंगे भी कौवे के जीवन को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा जहर देकर मारे गए चूहे खाने से भी कौवों की संख्या समाप्त हो रही है.