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'लॉकडाउन के शुरुआत में की सैकड़ों लोगों की मदद, अब खुद दाने-दाने को मोहताज' - Food crisis

लॉकडाउन के कारण किन्नर समाज के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है. वहीं, कोई भी जनप्रतिनिधि या समाजसेवी इनकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है. इस कारण किन्नर समाज के लोग परेशान हैं.

Transgender community
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Published : May 16, 2020, 12:17 PM IST

भोजपुर: समाज से उपेक्षित किन्नर समाज के सामने लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी का संकट आ गया है. कोरोना वायरस को लेकर सामाजिक दूरी के कारण शादी और बच्चे के जन्म जैसे अवसरों पर नाच-गाकर पैसा कमाने वाले किन्नर आज भुखमरी की कगार पर हैं. इन्हें सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

लॉकडाउन के कारण किन्नर समाज परेशान
लॉकडाउन शुरू होने पर गरीब लोगों को खाना खिलाने वाली इन किन्नर समुदाय ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि लॉकडाउन इतना लंबा चलेगा कि उनके घर में ही खाने के लाले पड़ जाएंगे. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान आरा शहर की मालकिन किन्नर तारा रानी ने कहा कि लॉकडाउन के शुरुआती दौर में उन्होंने सैकड़ों गरीब लोगों के यहां राशन वितरण किया था, लेकिन जब लॉकडाउन का समय-सीमा बढ़ने लगता तो उनके घर में ही खाने की समस्या उत्पन्न हो गई. ऐसे में कोई भी जनप्रतिनिधि या समाजसेवी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.

किन्नर समाज के सामने रोजी-रोटी का संकट

'खाने की समस्या उत्पन्न'
किन्नर तारा रानी के साथ करीब 20 किन्नर रहती थी, लॉकडाउन में खाने की समस्या उत्पन्न होने के बाद करीब आधे दर्जन किन्नर घर छोड़कर खाने की तलाश में बंगाल की तरफ निकल पड़े हैं. वहीं, किन्नर तारा रानी ने कोरोना को लेकर एक गीत भी तैयार किया है, जो अक्सर वो अपने घरों में गाती रहती हैं. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से हमारी किन्नर जो ट्रेनों, बसों, शादी-विवाह छठीहार में गीत गाकर पैसे कमाती थे वो बंद है. इस कारण भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है. साथ ही उन्होंने कहा कि राशनकार्ड में से भी नाम काट दिया गया है, जिससे समस्या काफी बढ़ गई है. अगर ऐसे ही लॉकडाउन बढ़ता रहा तो कोरोना से तो नहीं पर भुख से हम किन्नर जरूर मर जाएंगे.

पेश है रिपोर्ट

बता दें कि कोरोना वायरस के कहर से बचने के लिए देशभर में लॉकडाउन किया गया है. इस तालाबंदी के चलते हर दिन कमाने-खाने वाले लोगों की मुश्किलें दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. ट्रांसजेंडर भी देश की एक बड़ी आबादी है, जो रोज कमा खाकर अपना भरण-पोषण करती थी, समाज से दरकिनार किया हुआ ये समुदाय अब दाने-दाने को मोहताज हो रहा है.

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