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भोजपुर: छठ पर गीतों से गुंजायमान हुआ इलाका, कोईलवर और सोन नदी के घाट सज-धज कर तैयार

दीपावली की समाप्ती के बाद शहर से लेकर गांव-मोहल्ले की महिलाएं एक साथ बैठकर छठ के पारंपरिक गीत 'कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय', 'उग हो सुरुज देव', 'मारबो से सुगवा धनुष से' जैसे लोकगीतों को गुनगुना रही हैं.

छठ को लेकर कोइलवर और सोन नदी सज-धज कर तैयार

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Published : Oct 31, 2019, 10:30 AM IST

भोजपुर: बिहार का सबसे बड़ा पर्व कहे जाने वाले छठ की नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो गई है. छठव्रती गंगा स्नान के बाद भगवान सूर्य की आराधना के बाद कद्दू और चावल से बने प्रसाद को ग्रहण कर इसके अगले दिन खरना के साथ 36 घंटे का निर्जला उपवास अनुष्ठान शुरू करती हैं. इस अवसर पर जिले के शहर से लेकर गांव की गली-मोहल्ले छठ के पारंपरिक गीतों से गुंजायमान हो रहे हैं.

सूर्य मंदिर, मानिकपुर प्रखण्ड

'मारबो से सुगवा धनुष से'...
दीपावली पर्व के समाप्ती के बाद शहर से लेकर गांव-मोहल्ले की महिलाएं एक साथ बैठकर छठ के पारंपरिक गीत 'कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय', 'उग हो सुरुज देव', 'मारबो से सुगवा धनुष से' जैसे लोकगीतों को गुनगुना रही हैं. शहर से लेकर गांव छठी मइया की गीतों से गुंजायमान हो रहा है.

लोकगीतों को गुनगुनाती महिलाएं

कोइलवर और सोन नदी सज-धज कर तैयार
लोक आस्था के इस महापर्व को लेकर जिले का कोइलवर और सोन नदी घाट सज-धज कर छठव्रतियों के स्वागत में तैयार हो चुका है. नगर प्रशासन की ओर से शहर की मुख्य मुख्य सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था की जा रही है. प्रदेश के सबसे बड़े महापर्व को लेकर मानिकपुर प्रखण्ड के सूर्य मंदिर में स्थानीय लोग विगत दिन से ही इस महापर्व को सफल बनाने को लेकर पूरी तन्मयता के साथ लगे हुए हैं. मंदिर के पास ग्रामीण महिलाएं मिट्टी के चूल्हे को खुद से बना रही है. महिलाओं का कहना है की इस पर्व में शुद्धता का सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है. भगवान भास्कर का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही तैयार किया जाता है. इस महापर्व को सफल बनाने कि लिए मानिकपुर आदर्श पूजा समिति के सदस्य छठ घाट से लेकर आस-पास के सफाई में भक्ति भाव से जुटे हुए हैं. इस बाबत गांव के ग्रामीणों ने बताया कि इस सूर्य मंदिर में जो भक्त आस्था के साथ मन्नत मांगता है. वह जरूर पूरी होती है. लोग इस छठ घाठ पर दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं.

छठ को लेकर कोइलवर और सोन नदी सज-धज कर तैयार

चार दिनों तक चलेगा महापर्व
छठ पर्व का प्रारंभ 'नहाय-खाय' से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं. इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है. नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में स्नान कर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर भगवान भास्कर की अराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं. इस पूजा को 'खरना' कहा जाता है.इसके अगले दिन उपवास रखकर शाम को व्रतियां बांस से बने दउरा में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं. चौथे दिन व्रतियां सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर वापस लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं.

मिट्टी का चूल्हा बनाती महिलाएं

उत्तर भारत का सबसे बड़ा पर्व कहा जाता है छठ
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत है कि इस त्योहार में समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है. इस सूप-डाले को सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं. इस त्योहार को बिहार का सबसे बड़ा त्योहार भी कहा जाता है. हालांकि अब यह पर्व बिहार के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर भी मनाया जाने लगा है. इस पर्व में सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है.

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