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भोजपुर में प्रवेश करते ही बाबू वीर कुंवर सिंह के अदम्य साहस का होगा दीदार - Construction of 21 feet sword

आरा-पटना निर्माणाधीन फोर लेन सड़क से पटना से आरा जाते समय कायमनगर के पास नदी के किनारे बाबू वीर कुंवर की 21 फीट की ऊंची कांसे की चमकती तलवार का निर्माण किया गया है.

Babu Veer Kunwar
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Published : Jan 17, 2021, 3:55 PM IST

भोजपुर:प्रवेश द्वार से लेकर जिले के कई चिन्हित जगहों पर बाबू वीर कुंवर सिंह का लगभग 21 फीट की तलवार लोग अब देख सकेंगे. आरा-पटना निर्माणाधीन फोर लेन सड़क से पटना से आरा जाते समय कायमनगर के नदी के किनारे बाबू वीर कुंवर की 21 फीट की ऊंची कांसे की चमकती तलवार का निर्माण किया गया है.

बता दें कि यहां 130 वर्ग फुट में बने मेमोरियल को जमीन से लगभग 30 फीट ऊंचा रखा गया है. अंग्रेजों के साथ युद्ध की याद में आरा के पास बीबीगंज और बहोरनपुर के पास वीर कुंवर सिंह की तलवार रखी जाएगी. ताकि उनके अदम्य साहस और ताकत का एहसास नई पीढ़ी को कराया जा सके. इस मेमोरियल का निर्माण पर्यटन विकास निगम की ओर से करवाया गया है.

बाबू वीर कुंवर सिंह की तलवार

जानें कौन थे बाबू वीर कुंवर सिंह
बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के प्रसिद्ध भोज वंशज परिवार में वीर कुंव​र सिंह का जन्म सन् 1777 में हुआ था. उनके पिता का नाम तेज कुंवर सिंह था. पिता की मौत के बाद बाबू कुंवर सिंह 1830 में गद्दी पर बैठे थे. कुंवर सिंह के पास बड़ी जमींदारी थी. कहा जाता है कि बचपन से ही कुंवर सिंह को खेल खेलने की बजाय घुड़सवारी, निशानेबाजी, तलवारबाजी का शौक था. उनके बारे में ये भी प्रसिद्ध है कि भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद वे दूसरे योद्धा थे, जो गोरिल्ला युद्ध नीति में माहिर थे. बाबू कुंवर सिंह शाहाबाद की जागीरों के मालिक थे.

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बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में सक्रिय रहे. इसके बाद अंग्रेजों ने लखनऊ पर फिर से कब्जा कर लिया. कुंवर सिंह बिहार की ओर वापस लौटने लगे, जब वे जगदीशपुर जाने के लिए गंगा पार कर रहे थे, तभी अंग्रेजी सैनिकों ने उन्हें घेरने का प्रयास किया. गोलियां चला दी गईं, जिसमें से एक गोली बाबू कुंवर सिंह के हाथ पर लगी.

इस दौरान उन्होंने अपनी कलाई काटकर नदी में बहा दी और अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए. इसके बाद 23 अप्रैल, 1858 को अंग्रेजी सेना को पराजित करने के बाद वे जगदीशपुर पहुंचे. वे बुरी तरह से घायल थे. 1857 की क्रान्ति के इस महान नायक का 26 अप्रैल, 1858 को निधन हो गया.

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