भागलपुर: बिहार के भागलपुर जिले के सन्हौला प्रखंड (Sanhoula Block) में एक शिक्षक के भरोसे आठवीं तक का मदरसा संचालित हो रहा है. यह हाल है प्रखंड के छोटीनाकी के मदरसा इस्लामिया अनवारुल होडा (Madrasa Islamia Anwarul Hoda Chotinaki) का. एक ही शिक्षक (Lack Of Teachers In Bhagalpur) के भरोसे पूरा मदरसा है. 230 बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी एक शिक्षक (Teacher Appointment In Madrasa) पर है. इतना ही नहीं यहां शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण बड़ी बच्चियों को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है.
यह भी पढ़ें-शिक्षा विभाग विद्यार्थियों के भविष्य से कर रहा खिलवाड़, DM से छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन कर शिक्षक की मांग की
भागलपुर के सन्हौला प्रखंड में शिक्षा की नींव कमजोर दिखाई दे रही है. किसी भी बच्चे के भविष्य को संवारने के लिए प्राथमिक शिक्षा जरूरी है. प्राथमिक स्कूल ही शिक्षा की नींव होती है. लेकिन अगर नींव ही कमजोर हो तो बेहतर इमारत खड़ी नहीं हो सकती है. ऐसा ही हाल सन्हौला प्रखंड के छोटीनाकी मदरसा का है.
इस्लामिया अनवारुल होडा में जैसे तैसे बच्चों को शिक्षा दिया जा रहा है. यहां पढ़ाई बरामदे पर होती है. एक शिक्षक होने के चलते सभी बच्चों को बरामदे में एकत्रित करके एक साथ पढ़ाया जाता है. एक साथ सभी को पढ़ाने का मतलब है कि जो कक्षा पहली के लिए ज्ञान होगा,वही आठवीं तक के विद्यार्थियों के लिए भी होगा. मतलब एक समय में कक्षा 1 से 8 तक को एक ही ज्ञान परोसा जाता है.
बता दें कि बिहार में मदरसा शिक्षक बहाली (Teacher Appointment In Madrasa) को लेकर समय-समय पर अनियमितता और धांधली को लेकर हंगामे की खबरें सामने आती रही हैं. इसके साथ ही मदरसा बोर्ड पर प्रश्न भी खड़े होते रहे हैं. इन सबका खामियाजा बच्चों को उठाना पड़ता है. शिक्षकों की कमी के चलते इनकी पढ़ाई बाधित होती है.
यह भी पढ़ें-समस्तीपुर: बिना शिक्षक के दो सालों से चल रहा है इंटर कृषि कोर्स
इसके चलते कक्षा पांचवी में पढ़ने वाले बच्चे अपनी ही किताब को पढ़ने में अक्षम हैं. इस मदरसे में पिछले 2 साल से यही हाल है. मदरसे में 6 स्टाफ की जरूरत है. लेकिन अकेले एक शिक्षिका ही पूरे मदरसे के कार्यभार को संभाल रही है. अंजुम आरा बच्चों को पढ़ाती भी हैं, ऑफिस के कार्यों का निष्पादन भी करती हैं, परीक्षा लेने से लेकर रिजल्ट तैयार करने की जिम्मेदारी तक इन्हीं के कंधों पर है.
अनुमान लगाना मुश्किन नहीं होगा कि प्रशासनिक व्यवस्था की कमजोरी के कारण यहां अध्ययनरत बच्चे क्या सीख पा रहे होंगे. यहीं नहीं ,इस मदरसे में ना पानी की व्यवस्था है और ना ही शौचालय की ही व्यवस्था है. मदरसे के मुख्य गेट पर दरवाजा तक नहीं है, जिसके कारण यहां शिक्षिका और छात्र-छात्राएं खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं.
यह मदरसा जुआरियों और शराबियों का अड्डा बन गया है. यहां की प्रधानाध्यापिका ने कई बार विभाग के अधिकारियों को मदरसे की हालत से अवगत कराया. लेकिन इसके बाद भी समस्या का हल नहीं निकला. मदरसा में अव्यवस्थाओं का अंबार है. बिजली नहीं है, बैठने के लिए बेंच, टेबल, कुर्सी कुछ भी नहीं है. बच्चे अपने घरों से ही पीने का पानी लेकर मदरसा ज्ञान अर्जित करने आते हैं. शौचालय भी मदरसा से नदारद है, जिसके कारण अभिभावक बेटियों को मदरसा नहीं भेजते हैं.
यह भी पढ़ें-शिक्षकों की चेतावनी: 'मांग पूरी करें नहीं तो स्कूलों को छोड़ सड़कों पर करेंगे आंदोलन'
मदरसा की शिक्षिका अंजुम आरा ने कहा कि यह मदरसा 1970 के दशक में शुरू हुआ था. 1986 के बाद इसमें आठवीं तक के लिए पढ़ाई शुरू हुई. 6 स्टाफ होने चाहिए थे लेकिन वे अकेली हैं और पूरे क्लास के बच्चे को पढ़ाती हैं.
"ऑफिशियल काम के साथ-साथ सरकारी आदेशों का अनुपालन करने के अलावा ट्रेनिंग भी करते हैं. सभी छात्रों को बरामदे पर बैठा कर अध्ययन कराते हैं. पहले आठवीं और सातवीं क्लास के बच्चों को पढ़ाने के बाद उसी बच्चे को अन्य क्लास के बच्चे को पढ़ाने के लिये कहते हैं. कायदे से मदरसे में 6 स्टाफ होना चाहिए था, लेकिन नहीं है. इस तरह के हालात से जुझते हुए 1 साल से अधिका का समय बीत चुका है.इसको लेकर अधिकारियों को भी जानकारी दी गई. लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया."-अंजुम आरा, प्रभारी प्रधानाध्यापिका
यह भी पढ़ें-शिक्षक नियोजन: तीसरे चरण की काउंसलिंग में देरी से अभ्यर्थी नाराज, पूछा- कब तक करें इंतजार
मुख्य गेट नहीं होने के कारण मदरसे से कई बार चोरी भी हुई है. शौचालय नहीं होने के कारण बच्चियों को खासकर परेशानी होती है. अभिभावक अपने बच्चे को मदरसा नहीं भेजना चाहते हैं. यहां बिजली की भी व्यवस्था नहीं है और ना ही मेज कुर्सी डेक्स है. सभी बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं .
मदरसा में दो बार चोरी हो चुकी है. इसको लेकर सनोखर थाने में आवेदन भी दिया गया था. लेकिन आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. शिक्षिका ने बताया कि उन्हें यदि ऑफिशियल काम से भागलपुर या सन्हौला जाना पड़ता है तो उस दिन मदरसे में छुट्टी करना पड़ता है. इसके कारण भी बच्चों का पढ़ाई बाधित होती है.
"पीने के पानी की व्यवस्था मदरसे में नहीं है. इसलिये मदरसे से बाहर एक घर में लगे चापाकल से पानी लाने जाना पड़ता है. शौचालय की भी व्यवस्था नहीं है, खुले मैदान में जाने में डर लगता है."- रिहाना, छात्रा
मदरसे में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने भी ईटीवी भारत से बातचीत में अपनी समस्याओं को बताया. छात्रों ने कहा कि जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं. एक ही शिक्षक है. इसलिए कोर्स की पढ़ाई भी नहीं हो पाती है. पीने का पानी भी नहीं मिलता. शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है.
"मदरसा में गेट नहीं है इसलिए गांव के बूढ़े नौजवान और बच्चे सभी घुसकर उत्पात मचाते हैं. पानी पीने के लिए दूसरे के घर जाना पड़ता है लेकिन वहां से भी भगा दिया जाता है." - मोहम्मद इरशाद आलम ,छात्र
वहीं आयशा खातून और तमन्ना खातून ने बताया कि पीने के पानी की व्यवस्था मदरसे में नहीं होने के कारण मदरसे से दूर करीब आधे किलोमीटर पर एक चापाकल है, जहां वह पानी पीने के लिए जाती हैं. उन्होंने कहा कि मदरसे के पास में भी चापाकल है लेकिन वह निजी व्यक्ति का है, वह चापाकल से पानी देने से मना करते हैं.यही कारण है वो दूर जाकर पानी पीती हैं. उन्होंने कहा कि शौचालय भी यहां गंदा पड़ा है और टूटा फूटा है. साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण वह उपयोग करने लायक नहीं है.
साल 2010 में भारत सरकार ने बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून लागू किया था. जिसके तहत 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की बात कही गई थी. स्कूली बच्चों को सुदृढ करते हुए बुनियादी सुविधा से लैस करने की बात कही गई थी. लेकिन भागलपुर के इस मदरसे में इन घोषणाओं का भी कोई असर नहीं पड़ा है. बच्चों के भविष्य को लेकर शिक्षक के साथ ही अभिभावक भी चिंतित हैं.