पटना/भागलपुर/देवघर/दुमकाः बाबा धाम की अलौकिक कांवर यात्रा बिहार के भागलपुर जिले से शुरू होती है. इस यात्रा का एक बड़ा हिस्सा करीब सौ किलोमीटर बिहार में पड़ता है और इसके बाद करीब पंद्रह किलोमीटर झारखंड में आता है. परंपरा के अनुसार शिवभक्त भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा नदी में स्नान करते हैं और बाबा अजगैबीनाथ की पूजा कर यात्रा का संकल्प लेते हैं.
बिहार का लंबा सफर
शिवभक्त गंगा जल को दो पात्रों में लेकर एक बहंगी में रख लेते हैं, जिसे कांवर कहा जाता है. कांवर लेकर चलने वाले शिवभक्त कांवरिये कहलाते हैं. कांवरिये सुल्तानगंज से 13 किलोमीटर चलकर असरगंज पहुंचते हैं और यहां से तारापुर की दूरी 8 किलोमीटर और फिर रामपुर की दूरी 7 किलोमीटर है. इन पड़ावों पर कांवरिये थोड़ा विश्राम करते हैं.
चौबीस घंटे मुफ्त खाना और दवाएं
रामपुर से 8 किलोमीटर की यात्रा करने पर कुमरसार और 12 किलोमीटर आगे विश्वकर्मा टोला का पड़ाव आता है. रास्तेभर में कांवरियों की सेवा के लिए सरकार के साथ निजी संस्थाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. शिविरों में चौबीस घंटे मुफ्त खाना और दवाएं दी जाती हैं. थोड़ा और आगे बढ़ने पर जलेबिया मोड़ है. अपने नाम की तरह ही ये मोड़ काफी घुमावदार है.
सुईया पहाड़ में होते थे नुकीले पत्थर
जलेबिया मोड़ से 8 किलोमीटर आगे सुईया पहाड़ है. किसी जमाने में यहां के पत्थर बहुत नुकीले थे, हालांकि सड़क बनने के बाद रास्ता थोड़ा आसान हो गया है. इसके बाद कांवरियए अबरखा, कटोरिया, लक्ष्मण झूला और इनरावरन होते हुए गोड़ियारी पहुंचते हैं. करीब सौ किलोमीटर यात्रा के बाद बांका में बिहार की सीमा समाप्त हो जाती है और कांवरिये झारखंड पहुंच जाते हैं.
शिव के दर्शन की इच्छा
लंबी पैदल यात्रा के दौरान शिवभक्तों के पैरों में छाले पड़ जाते हैं लेकिन आस्था के आगे हर कष्ट छोटा नजर आता है. बोल बम के जयघोष के बीच उनका उत्साह बढ़ता जाता है और कदम अपने आप आगे बढ़ने लगते हैं. शिव के दर्शन की इच्छा सभी कष्टों को भुला देती है.