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गर्मी के साइड EFFECT : आसमान छू रही सब्जी और फलों की कीमतें

दियारा के क्षेत्र में कई ऐसे सब्जियां भी हैं जो बालू पर उगाई जाती है. धूप की तपिश बालू को काफी गर्म कर देती है. इसकी वजह से सब्जियों की उपज कम हो गई हैं. इसी तरह से भागलपुर में जो फल व्यवसाई हैं वो कोल्ड स्टोरेज से फल को खरीदकर लाते हैं.

सब्जियों की बिक्री कम

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Published : Jun 4, 2019, 12:39 PM IST

भागलपुरः भीषण गर्मी और तेज तपिश की वजह से इन दिनों फल और सब्जियों के दाम आसमान छूने लगे हैं. धूप की तपिश के कारण खेत में लगी सब्जियां बर्बाद हो रही हैं. लोग खेत से सब्जियां तोड़कर बाजार में लाकर बेचते हैं. उन्हें इसकी वजह से काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.

साथ ही साथ फल व्यवसायी भी इस भीषण गर्मी की मार झेल रहे हैं. कहीं ना कहीं अगर देखें तो मौसम की मार लोगों के घरों तक पहुंच गयी हैं. सब्जी ज्यादा नहीं होने की वजह से लोग अब कम सब्जियां खरीद रहे हैं. सब्जी उगाने वाले किसान का कहना है कि जब तेज धूप सब्जी पर पड़ती है तो जितने भी आने वाले फूल और फल होते हैं, वह सब गर्मी के कारण जल जाते हैं.

आसमान छूते सब्जियों की कीमतें

बालू पर उगाई जाती है सब्जियां
दियारा के क्षेत्र में कई ऐसी सब्जियां भी हैं जो बालू पर उगाई जाती हैं. धूप की तपिश बालू को काफी गर्म कर देती है. इसकी वजह से सब्जियों की उपज कम हो गई है. इसी तरह से भागलपुर में जो फल व्यवसायी हैं वे कोल्ड स्टोरेज से फल को खरीदकर लाते हैं. लेकिन तेज धूप और भीषण गर्मी की वजह से कोल्ड स्टोरेज से लाए गए फल पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रह पाते हैं और सड़ने लगते हैं.

आसमान छूते सब्जियों की कीमतें

रमजान में सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी
फल व्यवसायी का कहना है कि फलों का मौसम ठंड में होता है. ठंड के मौसम में फलों का उत्पादन ज्यादा होता है. वहीं गर्मी के मौसम में फलों का उत्पादन और खरीददारी भी कम होती है. इसलिए फलों के दाम भी आसमान छू रहे हैं. रमजान के महीने में भी सब्जियों और फलों की खपत आम दिनों के मुकाबले काफी ज्यादा हो जाती है. यह भी फलों और सब्जियों के दाम बढ़ने की एक बड़ी वजह है .

आसमान छूते सब्जियों की कीमतें

हाइड्रोजेल का करते हैं इस्तेमाल
लिहाजा ऐसे मौसम में सब्जी की खेती कर रहे किसान हाइड्रोजेल नामक चीज का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके इस्तेमाल से मिट्टी की नमी बरकरार रहती है. लेकिन ये इतनी महंगी आती है कि सब्जी की खेती करने वाले किसान इसे नहीं खरीद पाते हैं.

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