भागलपुर: अंग प्रदेश के नाम से विख्यात भागलपुर का अपना समृद्धशाली इतिहास रहा है. गंगा किनारे स्थित भागलपुर में जल मार्ग से आवागमन की सुविधा उपलब्ध होने के कारण इसे प्राचीन काल के बड़े व्यवसायिक केंद्र के रूप में जाना जाता है. वहीं, भागलपुर सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी हमेशा से काफी प्रसिद्ध रहा है. जिसमें एक ऊंचे स्थान पर ब्रिटिश प्रशासन द्वारा बनाया गया ऐतिहासिक अगस्ता क्लीवलैंड भवन या रवींद्र भवन पर्यटकों के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है.
इटालियन रोमानियन आर्किटेक्चर का उत्कृष्ट उदाहरण
ब्रिटिश कालीन 'अगस्ता क्लीवलैंड भवन' में ही रवींद्र नाथ टैगोर ने अपनी उत्कृष्ट साहित्यिक रचना 'गीतांजलि' के प्रमुख भागों को कलमबद्ध किया. बता दें कि उस समय के बाद से यह भवन 'रवींद्र भवन' के नाम से प्रचलित हो गया. वहीं, स्थानीय लोग इसे ऊंचे स्थान पर होने की वजह से 'टीलहा कोठी' भी कहते हैं. अगस्ता क्लीवलैंड द्वारा बनवाया गया रवींद्र भवन इटालियन रोमानियन आर्किटेक्चर का उत्कृष्ट उदाहरण है. जिसे देखने के लिए काफी दूर-दराज से पर्यटक आते हैं. वहीं, कोरोना काल में यहां लोगों की आवाजाही लगभग बंद हो गई है.
भागलपुर का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल रविंद्र भवन सरकारी मदद की दरकार
वर्तमान समय में इस भवन में रिजल्ट स्टडी सेंटर का कार्यालय मौजूद होने के साथ ही प्राचीन इतिहास की कक्षाओं का भी संचालन होता है. इसके बावजूद दुर्भाग्यवश ऐतिहासिक रूप से काफी महत्वपूर्ण होने के बाद भी यह भवन सरकारी उपेक्षा का लगातार शिकार होता रहा है. जिस कारण रखरखाव के अभाव में इस खूबसूरत भवन का कई हिस्सा अब जर्जर होने लगा है. स्थानीय सामाजिक संस्थाओं के बराबर ध्यानाकर्षण के बाद भी सरकार का ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित करने में रूचि नहीं दिखा रही है.
रवींद्र भवन में सिमटा इतिहास का बड़ा अध्याय
रवींद्र भवन की महत्ता की बात करें तो ब्रिटिश काल से लेकर आजाद भारत तक इतिहास का एक बड़ा और लंबा दौर रविंद्र भवन से जुड़ा हुआ है. बता दें कि भागलपुर के स्वतंत्रता सेनानी तिलकामांझी ने ब्रिटिश शासन काल द्वारा नियुक्त प्रशासक अगस्ता क्लीवलैंड से लोहा लिया और बाद में किसी गंभीर बीमारी की वजह से ब्रिटिश प्रशासक क्लीवलैंड की मौत हो गई. इसके बाद क्लीवलैंड हाउस बाद ने रवींद्र भवन का रूप ले लिया. वर्तमान में रवींद्र भवन तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का एक हिस्सा बन चुका है. इसके बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन रवींद्र भवन की जर्जर स्थिति सुधार पाने में पूरी तरह से विफल रहा है.