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भागलपुर में झींगा मछली उत्पादन का बन रहा केन्द्र, 25 लाख तक हो रही आमदनी

Prawn Production In Bhagalpur: कतरनी धान और सिल्क उद्योग में अपनी पहचान बनाने वाले भागलपुर में पहली बार प्रॉन का उत्पादन किया जा रहा है. भागलपुर अब प्रॉन (झींगा मछली) उत्पादन के लिए भी जाना जाएगा. बता दें कि डॉक्टर नसीम अख्तर ने खारे पानी में समुद्री मछलियों को पालने के लिए सफलता प्राप्त की है. जिस जमीन पर खेती-किसानी कर वो 40 हजार रुपए कमाते थे, वहीं अब वह प्रॉन उत्पादन कर 25 लाख तक की आमदनी सालाना कमा रहे हैं.

भागलपुर में झींगा मछली उत्पादन
भागलपुर में झींगा मछली उत्पादन

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 1, 2023, 6:10 AM IST

देखें रिपोर्ट

भागलपुर: बिहार में पहली बार प्रॉन (झींगा मछली) की खेती की जा रही है. कतरनी धान और सिल्क उद्योग में अपनी पहचान बनाने के बाद भागलपुरअब प्रॉन उत्पादन के क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ा रहा है. जिले के गोराडीह प्रखंड के पिथना गांव में समुद्री पानी से प्रॉन मछली पालन के लिए हैचरी बनाया गया है. कोलकाता से समुद्री पानी ट्रकों द्वारा लाकर प्रॉन मछली पाली जा रही है.

कोरोना काल में इजाद किया नया तरीका: कोरोना काल में मुंबई से लौटने के बाद डॉक्टर एम नसीम अख्तर ने अपने इस नए प्रोजेक्ट को राह दिखाई थी. डॉ नसीम ने भागलपुर में अपना एक नया तरीका इजात किया और फिर मछली उत्पादक के रूप में एक नई दिशा मिली. कोरोना काल में एक ओर जहां लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं था, तो वहीं डॉ नसीम ने पहले खेती किसानी करने की सोची, जिससे उन्हें सालाना 40 हजार रुपए मुनाफा हो रहा था. लेकिन इतने से उनका मन नहीं भरा और उन्होंने कुछ नया करने की ठान ली.

तालाब में प्लास्टिक शीट लगाकर डाला समुंद्र का पानी

साइंटिस्ट डॉ नसीम अख्तर ने की पहल: आमतौर पर प्रॉन का उत्पादन समुद्र के तटवर्ती इलाके में ही होता है. प्रॉन के पैदावार के लिए समुद्री तटीय जैसी आबो हवा चाहिए. मगर इस मछली को पालने वाले डॉक्टर नसीम अख्तर ने खारे पानी में समुद्री मछलियों को पालने के लिए सफलता प्राप्त की है. पहले जहां उन्हें किसानी से 40 हजार रुपए होते थे वहीं अब वो प्रॉन का उत्पादन कर 25 लाख रुपए सालाना कमा रहे हें.

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प्रॉन उत्पादन का तरीका: उन्होंने गांव में तालाब बनाकर कोलकाता से मंगाई गई समुद्र के पानी को डाला और एडिएटर मशीन लगाकर झींगा मछली का उत्पादन शुरू किया. ए़डिएटर मशीन से तालाब में समुद्र जैसी लहर तैयार की जाती है. पूरे तालाब में प्लास्टिक शीट लगाकर समुद्र से लाया पानी भरा जाता है. ताकि पीपीटी तटवर्ती क्षेत्र जैसा हो सके. फिर रूट ब्लोअर से ऑक्सीजन को अनुकूल किया जाता है. इसमें मैग्निशियम, कैलशियम और मिनरल के सहारे झींगा मछली की वजन बढ़ाई जाती है.

ऑक्सीजन व पीपीटी पर खास नजर:इन तालाबों में ऑक्सीजन की लगातार सप्लाई को लेकर रूट ब्लोअर लगाया गया है. तालाब में पानी के ऑक्सीजन लेवल को दुरुस्त रखा जाता है. लहरों के लिए जल की तरह इस पानी में भी मैग्निशियम, कैलशियम, सोडियम और मिनरल की मात्रा बराबर रखी जाती है. इसके लिए इन तत्वों से बने चारे प्रॉन मछली को दिए जाते हैं.

समुद्री पानी में प्रॉन का उत्पादन

लोगों को सिखाएंगे प्रॉन उत्पादन के तरीके: डॉक्टर नसीम की मानें तो सिर्फ 100 दिन में ही मछलियों का वजन 20 ग्राम से 22 ग्राम या उससे अधिक हो जाता है. यानी इसका विकास ठीक वैसे ही है, जिससे कि तटवर्ती इलाके में पानी पर पलते है. उन्होंने बताया कि पहले ही साल में लागत पूंजी निकल आई है, जल्द ही वह तालाबों का क्षेत्रफल बढ़ाएंगे और अपने ज्ञान को लोगों के साथ साझा करेंगे ताकि और भी लोग इससे कमाई कर सके.

प्रशासनिक अधिकारियों ने लिया जायजा:उन्होंने बताया कि इस नए तरीके की मछली पैदावार को देखने के लिए हाल ही में भागलपुर जिले के डीएम सुब्रत कुमार सेन, डीडीसी एवं अन्य पदाधिकारी उनके कृत्रिम तालाब पर जा चुके हैं. अधिकारियों ने प्रॉन मछली की भागलपुर में खेती होता देख काफी तारीफ भी की है, वहीं दूसरों को भी इससे सीखने को कहा है.

प्रॉन उत्पादन के लिए लगाई गई मशीन

"गोराडीह के पिथना में समुद्री मछली पालन के लिए एक नजीर है. वह मत्स्य पालन से जुड़े सभी लोगों को यहां जाकर उनका तरीका सीखना चाहिए और उसे अपनाना चाहिए. इससे उन्हें बहुत फायदा होगा."- सुब्रत कुमार सेन, डीएम

मतस्य पालन में की शोध:आपको बता दें कि भागलपुर के भीखनपुर निवासी डॉक्टर नसीम अख्तर ने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च में सीनियर साइंटिस्ट के रूप में 22 साल अपनी सेवाएं दी है. डॉ नसीम अख्तर ने चीन और वियतनाम जैसे देशों में मत्स्य पालन में शोध किया है. वह अपनी प्रयोग को धरातल पर लाकर गोराडीह प्रखंड के पीथना गांव में समुद्री पानी में मछली पालन कर रहे हैं. भागलपुर में प्रॉन मछली के उत्पादन में वे अपनी एक नई पहचान बनाना चाहते हैं और किसानों के लिए आय का एक नया जरिया दिखाना चाहते हैं.

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