भागलपुर:बेटियां अब किसी बेटे से कम नहीं है.अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए ई रिक्शा चला रही भागलपुर की पिंकी देवी (E rickshaw driver Pinky Devi Of Bhagalpur) ने यह एक बार फिर साबित कर दिया है. 'ये मत कहो खुदा से, मेरी मुश्किलें बड़ी है. इन मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है' ई-रिक्शा पर बैठी एक सवारी ने इन पंक्तियों को उस समय गुनगुना दिया, जब उन्होंने ई-रिक्शा का हैंडल पिंकी को संभाले देखा. महिला ई-रिक्शा चालक को देख लगभग सभी यात्री एक पल के लिए उसकी हिम्मत को सराहने लगते हैं.
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गरीबी ने पिंकी का बढ़ाया हौंसला: पिंकी की शादी सुल्तानगंज प्रखंड के नयागांव पंचायत स्थित उत्तर टोला ऊंचा गांव निवासी अमरजीत शर्मा के साथ हुई है. 30 वर्षीय पिंकी के पति मजदूर हैं. ससुराल की गरीबी और चार बच्चों की पढ़ाई करवाने की जिम्मेदारी ने पिंकी को घर से बाहर निकलने को मजबूर कर दिया. आज पिंकी ई-रिक्शा चला कर ना सिर्फ घर का भरण-पोषण में हाथ बंटा रही है, बल्कि अपने चार बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च भी उठा रही है.
आठवीं तक ही पढ़ाई कर सकी पिंकी:आत्मनिर्भर पिंकी महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गयी है. पिंकी ने बातचीत के क्रम में अपनी स्थिति साझा करते हुए बताया कि वो मुंगेर जिला के असरगंज थाना क्षेत्र के ममई गांव की रहने वाली है. चार भाई-बहन में वह सबसे बड़ी है. वो पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती थी, लेकिन उसके पिता सुरेन शर्मा की आर्थिक स्थिति ठीक नही रहने के कारण आठवीं तक ही पढ़ाई कर सकी. वर्ष 2010 में उसकी शादी ऊंचागांव में सुबोध शर्मा के पुत्र अमरजीत से हो गई.
पिंकी ने सब्जी बेचकर ई-रिक्शा खरीदा: पिंकी के ससुराल वाले बेहद गरीब हैं. यहां उसके पति के पास रहने के लिए अपनी जमीन भी नहीं है. उनके गोतिया ने रहने के लिए मौखिक रुप से कुछ जमीन दी है. जिसमें पूरा परिवार किसी तरह अपना जीवन काट रहा है. पिंकी ने बताया कि ससुराल की गरीबी देखकर उन्होंने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत और बच्चों की बेहतर शिक्षा दिलाने का संकल्प लिया. इसके बाद पिंकी सब्जी का ठेला लगाकर कुछ पैसे इकट्ठा किया और ई-रिक्शा खरीद लिया.
ई-रिक्शा चलाकर आत्मनिर्भर बनी पिंकी:पिंकी करीब सात वर्ष तक करहरिया, असरगंज और लखनपुर हाट में सब्जी बेचती रही. इस दौरान वह थोड़ा-थोड़ा कर राशि जमा करती रही .पति भी दिल्ली में फर्नीचर का काम करता है. बीते वर्ष लाॅक डाउन में हम दोनों की जमा पूंजी से एक ई-रिक्शा निकलवाया है. जिससे प्रतिदिन चलाकर 500 से लेकर 800 रुपये तक कमा लेती है. फिलहाल वह अपने तीन बच्चों को सरकारी स्कूल भेजती है. लेकिन प्राइवेट ट्यूशन भी पढ़ने के लिए बच्चे जाते हैं. पिंकी ने कहा कि अगर सरकार भी मुझे कुछ आर्थिक सहयोग करें तो बच्चों के पठन-पाठन में और बेहतर सुविधा मुहैया कराने में सफल हो पाऊंगी.
"मैं नहीं पढ़ सकी तो क्या... बच्चों को पढ़ाऊंगी' आर्थिक तंगी के कारण आगे की पढ़ाई नहीं करने पर मेरी सपना भी अधूरी रह गई थी. लेकिन जब मुझे पहली पुत्री हुई तो मेरा सपना फिर जागृत हो उठी. तब सोचने लगी कि मैं तो पढ़ाई नहीं कर सकी. लेकिन अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा दिलाकर काबिल बनाऊंगी. लेकिन मेरे पति की मजदूरी राशि घर और बच्चों की भरण-पोषण में ही सिमट कर रह जाती थी. तब मैंने संकल्प ली की मैं भी मेहनत करुंगी और आर्थिक स्थिति को मजबूत कर बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाकर डाक्टर-इंजीनियर और ऑफिसर बनाऊंगी"-पिंकी यादव, ई-रिक्शा चालक
बच्चों को इंजीनियर-डॉक्टर बनाने का सपना: पिंकी के चार बच्चे हैं. इनमें दो पुत्री 10 वर्ष की वर्षा और सात वर्ष की रिया है तो पांच वर्ष का शिवम और तीन वर्ष का सत्यम के रूप में दो हैं. पिंकी का सपना है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर इंजीनियर और डॉक्टर बनाए. पिंकी ने कहा कि आर्थिक तंगी के कारण आगे की पढ़ाई नहीं करने पर मेरी सपना अधूरा रह गया. लेकिन जब मुझे पहली पुत्री हुई, तो मेरा सपना फिर से जागृत हो उठा. अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाकर काबिल बनाऊंगी.