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संविधान की मूल प्रति को बिहार के इस शख्स ने किया था डिजाइन, आज नहीं कर रहा कोई याद

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Published : Nov 26, 2019, 12:45 PM IST

Updated : Nov 26, 2019, 3:56 PM IST

1922 में नंदलाल बसु शांतिनिकेतन के कला भवन में प्रिंसिपल नियुक्त हुए. उसी समय इंदिरा गांधी भी शांतिनिकेतन में कला एवं साहित्य की शिक्षा के लिए पहुंची. यहां इंदिरा गांधी की शिक्षा का प्रभार और उनकी देखरेख की जिम्मेवारी नंदलाल बसु के पास थी.

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नंदलाल बसु

भागलपुरः"मुझे शक है होने ना होने पर खालिद, अगर हूं तो अपना पता चाहता हूं. "खालिद मुबस्सिर का यह शेर नंदलाल बसु के गुम होते वजूद पर बिल्कुल सटीक बैठता है. इस देश को आजाद कराने से लेकर संविधान निर्माण तक न जाने कितने लोगों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है. लेकिन कई लोग ऐसे हैं, जिनको इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिल पाई. उन्हीं में एक नाम शामिल है संविधान की मूल प्रति की डिजाइन करने वाले नंदलाल बसु का. संविधान दिवस पर पेश है एक खास रिपोर्ट.

हवेली खड़गपुर में हुआ था नंदलाल का जन्म
प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बसु मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर के रहने वाले थे. उनका जन्म 3 दिसंबर 1882 में हवेली खड़गपुर में ही हुआ था. नंदलाल बोस के पिता पूर्ण चंद्र बसु दरभंगा महाराज के रियासत के मैनेजर हुआ करते थे. जो हवेली खड़गपुर स्टेट का प्रबंधन देखते थे. नंदलाल बोस ने कई प्रसिद्ध चित्र बनाये हैं. जिसमें दांडी मार्च, सती का देह त्याग और संथाली कन्या प्रमुख है. नंदलाल बसु चित्रकार होने के साथ-साथ लेखक भी थे. उन्होंने रुपावली, शिल्प चर्चा और शिल्पकला जैसी रचनाएं भी लिखी हैं.

दांडी यात्रा पर नंदलाल बसु की चित्रकारी

बसु से नेहरू का आग्रह
जब 1947 में भारत आजाद हुआ और नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने भारत के संविधान के निर्माण के बाद मूल प्रति के डिजाइन के लिए नंदलाल बसु से ही आग्रह किया. जिसे नंदलाल बसु ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और मूल प्रति पर चित्रण किया, जो भारतवर्ष के इतिहास में शुमार हो गया. आमतौर पर लोग संविधान के रचयिता बाबा साहब अंबेडकर को तो जरूर जानते हैं, लेकिन संविधान को चित्रांकित करने वाले नंदलाल बसु के नाम से काफी लोग अपरिचित हैं.

स्टेच्यू ऑफ नंदलाल बसु

इंदिरा गांधी को दी थी कला की शिक्षा
नंदलाल बसु अपनी उच्च शिक्षा के लिए शांतिनिकेतन बंगाल चले गए थे. जहां पर उन्होंने कला एवं साहित्य से जुड़ी हुई शिक्षा प्राप्त की. फिर वहीं लोगों को कला और साहित्य की शिक्षा देने लगे. 1922 में वह शांतिनिकेतन के कला भवन में प्रिंसिपल नियुक्त हुए. उसी समय इंदिरा गांधी भी शांतिनिकेतन कला एवं साहित्य की शिक्षा के लिए पहुंची, जहां पर नंदलाल बसु ने इंदिरा की शिक्षा का प्रभार और उनकी देखरेख अपने जिम्मे ले लिया. जब नंदलाल शांति निकेतन में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, उस दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू हमेशा शांतिनिकेतन आया करते थे. वो नंदलाल बसु की कला और साहित्य से काफी प्रभावित थे.

नंदलाल बसु की कलाकृति

गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने की थी तारीफ
नंदलाल बसु के जीवन पर काम करने वाले हरि सिंह कॉलेज के अंग्रेजी के प्रोफेसर रामचरित्र सिंह ने नंदलाल बसु की जिंदगी को अपनी एक पुस्तक में जगह दी है. जिसमें उन्होंने नंदलाल बसु के जीवन से जुड़े हुए कई तथ्यों को लिखा है. कवि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने एक संक्षिप्त विवरण में नंदलाल के बारे में कहा था- नंदलाल बसु एक पूर्ण काल्वित अपने जीवन और कार्य में समर्पित सांसारिक सफलताओं के प्रति उदासीन अपनी कला एवं कार्यों के प्रति एक निष्ठावान व्यक्तित्व हैं.

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टूट चुका है वह स्कूल जिसमें ग्रहण की शिक्षा
नंदलाल बसु की प्रारंभिक शिक्षा हवेली खड़गपुर में ही स्थित मिडिल स्कूल में हुई. इसी कारण बांग्ला लिखने बोलने के अलावा अच्छी हिंदी बोलने और समझने की समझ नंदलाल बसु में थी. जिस मिडिल स्कूल के भवन में नंदलाल बसु ने अपने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. आज वह भवन भी जर्जर होकर टूट चुका है और सरकारी उपेक्षा का भी शिकार है. हालांकि आस पास दूसरे भवन बना दिए गए हैं, लेकिन सरकार उसे हेरिटेज के तौर पर डेवलप कर सकती है.

खंडहर में तब्दील स्कूल भवन

जर्जर हो गया हवेली खड़गपुर का मकान
नंदलाल बसु के दादा अपने समय के समृद्ध व्यक्ति के तौर पर जाने जाते थे, उन्होंने बंगाल के हावड़ा में एक मकान बनवाया था, नंदलाल बसु कोलकाता में इसी मकान में जाकर ठहरते थे, फिर वहीं रहने लगे. नंदलाल बसु की हवेली खड़गपुर की मकान पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है. वर्तमान में वहां पर सरकारी बस स्टैंड का संचालन किया जा रहा है. नंदलाल बसु की मां क्षेत्रमणि देवी की रुचि शिल्प कला में काफी ज्यादा थी. इसलिए नंदलाल को कला की प्रेरणा अपनी माता से ही मिली. हालांकि जब नंदलाल बसु 13 वर्ष के थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया था.

स्पेशल रिपोर्ट

सरकारी उदासीनता पर रिश्तेदारों की नाराजगी
नंदलाल बसु के रिश्तेदार सोम प्रकाश पाल का कहना है कि जिस तरह से नंदलाल गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गए हैं, इनसे उन्हें काफी दुख है. जहां एक तरफ सरकार भारत के इतिहास से जुड़े लोगों को ढूंढकर सम्मानित कर रही है, वहीं नंदलाल बसु का नाम आखिर गुमनाम क्यों हो गया. सोम प्रकाश पाल कहते हैं- उस समय के तत्कालीन डीएसपी डीएन गुप्ता की पहल पर नंदलाल बसु की प्रतिमा को भागलपुर चौक पर स्थापित किया गया. ताकि लोग नंदलाल बसु को जान सकें.

शिलापट, नंदलाल बसु

गुमनाम हो गया देश का यह महान चित्रकार
जिस इतिहास को आज तक हम लोगों ने पढ़ा वह ज्यादातर कुछ महापुरुषों के आस-पास घूम कर खत्म हो जाता है. लेकिन आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर संविधान के मूल प्रति की डिजाइन बनाने वाले बिहार के नंदलाल बसु की मौजूदगी ना ही किसी इतिहास के पन्नों में और ना ही किसी संग्रहालय में है.

Last Updated : Nov 26, 2019, 3:56 PM IST

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