भागलपुर: बिहार में इन दिनों बारिश (Flood In Bihar) और बाढ़ ने तबाही मचा रखी है. बारिश के कारण गरीब परिवार का जीना दुश्वार हो गया है. गांव में पानी भर जाने से सभी ग्रामीण सूखा की ओर पलायन कर रहे हैं. वहीं बिहार के भागलपुर (Bhagalpur) जिले में भी बाढ़ पीड़ितों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है. कोसी और गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है. जिसके कारण लोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या हो गई है.
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जिले के नवगछिया अनुमंडल में कोसी और गंगा नदी दोनों कहर ढा रही है. जिसके कारण सुल्तानगंज, नाथनगर, सबौर, कहलगांव और पीरपैंती प्रखंड में धीरे-धीरे गंगा का पानी फैल रहा है. इससे हजारों परिवार बेघर होने को मजबूर हो गए हैं. बाढ़ पीड़ित परिवार घर छोड़कर ऊंचे स्थान की ओर पलायन कर रहे हैं.
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गरीब परिवार सूखे स्थानों पर जाकर अपना आशियाना बना रहे हैं. लेकिन वहां भी उनकी परेशानी खत्म हो नहीं रही है. वे लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं. जहां बाढ़ प्रभावित परिवार के लोगों ने आश्रय लिया है, वहां न तो बिजली की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी की. यदि कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है, तो डॉक्टर के पास जाने तक की व्यवस्था नहीं है.
जिला प्रशासन के अधिकारी भी इन पीड़ित परिवारों का हालचाल जानने नहीं पहुंच रहे हैं. नाथनगर और सबौर दियारा इलाके से पलायन कर भागलपुर विश्वविद्यालय के टिलहा कोठी में सैकड़ों परिवार आश्रय लिए हुए हैं. हर वर्ष मॉनसून के मौसम में ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है. इस वर्ष भी लोग रहने के लिए तंबू लगाकर प्लास्टिक की शीट लगा रहे हैं.
बता दें कि हर वर्ष जिला प्रशासन बाढ़ पीड़ितों को सुविधा मुहैया कराने के लिए करीब 3 महीने पूर्व ही निविदा निकालती है. लेकिन उस सुविधा का लाभ लोगों को सही समय पर नहीं मिल पाता है. पिछले वर्ष भी काफी देर बाद जिला प्रशासन के माध्यम से सरकारी स्तर पर आश्रय स्थल बनाया गया था. इसके साथ ही सूखा, राशन और बिजली मुहैया कराई गई थी.
'सरकार के माध्यम से कोई उपाय नहीं किया जा रहा है. हर साल हमलोगों का यही हाल होता है. 2 महीने घर छोड़ कर रहना पड़ता है. सावन और भादो महीने में ज्यादा परेशानी होती है. हम लोगों को कहीं ऊंचे स्थान पर आश्रय लेना पड़ता है. यहां भी कोई प्रबंध नहीं किया गया है. बाढ़ के समय घर में पानी घुस आता है. बाल-बच्चों को लेकर किसी तरह तैरकर ऊंचे स्थान पर जाते हैं. नाव पर दिन गुजारना पड़ता है. बाढ़ आने से पहले ही हमलोग खाने के लिए आटा और कुछ सुखे राशन की व्यवस्था कर लेते हैं.'-सुधा देवी, बाढ़ पीड़ित
इस वर्ष भी अब तक जिला प्रशासन के माध्यम से बाढ़ पीड़ितों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है. बाढ़ पीड़ित परिवार खुले में शौच करने को मजबूर हैं. इसके साथ ही दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. जिससे गंभीर बीमारी होने का खतरा बना रहता है.
हम लोग परिवार को लेकर हर वर्ष टिलहा कोठी रहने आते हैं. यहां सरकार के माध्यम से कोई भी व्यवस्था नहीं की गई है. यहां न बिजली की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी की व्यवस्था है. रात में परिवार और बाल बच्चों को लेकर अंधेरे में ही सोना पड़ता है. हमेशा सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीव-जंतु का खतरा बना रहता है. खाने-पीने तक की व्यवस्था सरकारी तौर पर नहीं की गई है. कोई भी अधिकारी देखने के लिए नहीं आए हैं. किसी तरह सत्तू खाकर दिन-राच व्यतीत करना पड़ता है.-रामजी महतो, बाढ़ पीड़ित
बता दें कि पिछले 1 महीने से गंगा और कोसी नदी में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. जिससे लोगों की परेशानियां बढ़ गई हैं. इन दिनों गांव टापू बन गया है. सरधो के उत्तरी क्षेत्र में बरारी पंचायत से शंकरपुर तक बाढ़ का पानी फैल गया है. प्रखंड को जोड़ने वाली कई सड़कों पर पानी बह रहा है.
सबौर जमसी पथ, बाबूपुर संत नगर पथ, राजपुर मुरहन पथ पर बाढ़ का पानी आ गया है. जिससे आवागमन बाधित हो गया है. रजंदीपुर पंचायत के संत नगर, बडेर, फरका पंचायत के घोषपुर फरक्का, इंग्लिश, ममलखा पंचायत के मसाढु, रामनगर दियारा, हरदासपुर सहित चंदेरी पंचायत के सुल्तानपुर राजपुर में गंगा का पानी पहुंच गया है. यहां के लोग धीरे-धीरे NH-80 और ऊंचे स्थल पर आश्रय लेने लगे हैं.