भागलपुर: राज्य का पहला कछुआ पुनर्वास केंद्र जिले में बनकर तैयार हो गया है. पुनर्वास केंद्र को वन विभाग के सुंदरवन में बनाया गया है. करीब एक साल से चल रहे पुनर्वास केंद्र का निर्माण पूरा हो गया है. जिसकी तकनीकी प्रारूप वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा तैयार की गयी है. कछुओं की बढ़ती तस्करी और विलुप्त हो रही प्रजाति को संरक्षित करने के लिए यह रेस्क्यू सेंटर खोला गया है.
13 कछुओं को मिला संरक्षण और बचाव
जिले के सुंदरवन में बनाए गए कछुआ संरक्षण केंद्र में अभी तक कुल 13 कछुओं को रेस्क्यू कर बचाया गया है. इनमें ऐसे कछुए शामिल हैं, जिसे लोग अपने घरों के एक्वेरियम में सजाकर रखते थे. रेस्क्यू किए गए इन कछुओं को ट्रेन से तस्करी कर बाहर ले जाया जा रहा था. लेकिन सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम ने सभी कछुओं को बरामद कर स्वास्थ्य परीक्षण के बाद टर्टल रेस्क्यू सेंटर ले गए. इसमें ऐसे कछुए हैं, जो ठंड के मौसम में मिट्टी में चले जाते हैं और इन्हें पानी की कोई जरूरत नहीं होती. ऐसे कछुओं की प्रजाति को लिसेमिस पेंक्टेटा कहते हैं. अभी कछुआ संरक्षण केंद्र में इनकी संख्या चार है. कछुए की एक प्रजाति को पेंगसुरा टेक्टा कहते हैं जो ठंड में भी पानी में विचरण करते हैं और धूप सेंकने के लिए बाहर आ जाते हैं.
घायल कछुओं का होता है इलाज
चिकित्सा पदाधिकारी के रुप में कार्यरत डॉ संजीत कुमार ने बताया कि इस पुनर्वास केंद्र में अभी 13 कछुओं को रखा गया है. जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएंगे तो उन्हें गंगा नदी में छोड़ दिया जाएगा. यहां दोनों तरफ की ट्रेन रूट होने की वजह से कछुओं की तस्करी भी की जा रही थी. पहले, तस्करों से छुड़ाने के बाद हम उन्हें गंगा में छोड़ दिया करते थे. वह सही सलामत गंगा में रह रहा है या नहीं. स्वस्थ है या नहीं है, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था. लेकिन अब जिन कछुओं का रेस्क्यू किया जाता है उनका पहले स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है. अगर वो नदी में छोड़ने लायक नहीं हैं तो उनका यहां इलाज किया जाता है. उन्होंने कहा कि प्रकृति को साफ रखने के लिए कछुआ बहुत जरूरी जीव है. जैसे गिद्ध मरे हुए जानवरों को खाकर प्रकृति को साफ रखने में अहम भूमिका निभाता है. उसी तरह हमारे तालाबों और नदियों में जब भी कोई जानवर या जीव मर कर सड़ने लगते हैं तो ये कछुए उन्हें बड़ी मात्रा में खाकर नदियों को साफ रखते हैं.
घायल कछुओं का हो रहा इलाज तस्करी करने वालों को हो सकती है 7 साल की सजा
'जानकारी के आभाव में लोग कछुओं को मार कर खा जाते हैं. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शेड्यूल-1 में शेर, बाघ की तरह ही कछुए भी इसी श्रेणी में विलुप्त होने वाली प्रजाति के अंतर्गत आते हैं. इन्हें मारने पर 7 साल तक की सजा का हो सकती है. इसको रोकने के लिए लोगों में जागरुकता जरुरी है. इसके लिए हमारी एक टीम घर घर जाकर लोगों को जागरूक करेगी.'-डॉ संजीत कुमार, चिकित्सा पदाधिकारी.
उपमुख्यमंत्री करेंगे विधिवत उद्घाटन
इस टर्टल रेस्क्यू सेंटर में 500 कछुओं को रखने की जगह बनाई गई है. इस पूरे क्षेत्र में कछुआ पुनर्वास केंद्र की आवश्यकता थी. ताकि कछुओं को संरक्षित कर इनकी संख्या बढ़ाई जा सके और गंगा नदी को साफ रखा जा सके. डॉ संजीत कुमार ने बताया कि कछुआ संरक्षण केंद्र को अभी पूरी तरह से शुरू नहीं किया जा सका है. अभी इसका विधिवत उद्घाटन होना बाकी है. वन विभाग के मंत्री और उपमुख्यमंत्री इसका विधिवत उद्घाटन करेंगे. इसके उद्घाटन के बाद विलुप्त हो रहे कछुओं को बचाने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा. ताकि लोग कछुए जैसे जीव के महत्व को समझ कर इसे संरक्षित करने में सरकार का सहयोग करेंगे.