भागलपुरः जिले की प्रसिद्ध चित्रकला मंजूषा को पुनर्जन्म देने वाली स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी का नाम भला कौन नहीं जानता. अंग प्रदेश की मशहूर मंजूषा कला को विश्व की प्रथम कथा आधारित चित्रकला माना जाता है. लेकिन कुछ दशक पहले यह कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. उस वक्त इस प्राचीन लोककला को सिर्फ चक्रवर्ती देवी ने ही अपने रंगों से उकेरकर उभारा था.
चक्रवर्ती देवी ने अपने आसपास रहने वाली कई महिलाओं को मंजूषा चित्र कला से रूबरू कराया था. जिसका नतीजा था कि उस समय हजारों की तादाद में महिलाओं को मंजूषा कला का प्रशिक्षण चक्रवर्ती देवी से मिला था. आज मंजूषा कला को पूरे देश में लोग जानने लगे हैं और पसंद भी करते हैं.
नहीं मिला सरकार से सम्मान
अब मंजूषा चित्रकथा को भागलपुर के पारंपरिक रेशम के साथ में भी जोड़ दिया गया है. रेशम वस्त्र पर मंजूषा पेंटिंग की बात ही कुछ अलग है पूरे देश में इस कलाकृति को अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है. इन तमाम चीजों का श्रेय सभी चक्रवर्ती देवी को ही जाता है. अब चक्रवर्ती देवी इस दुनिया में नहीं है लेकिन सरकार को जो सम्मान चक्रवर्ती देवी को देना चाहिए उसकी उपेक्षा का अंदाजा उनके परिवार के देखकर लगाया सकता है.