भागलपुर: विश्व कछुआ दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपकोभागलपुर के कछुआ पुनर्वास केंद्र (Bihar Jharkhand only turtle rehabilitation center ) के बारे में बताने जा रहा है. यह केंद्र कई मायनों में खास है. साफ और ताजे पानी में कछुओं को स्वतंत्र होकर विचरण करने की आजादी है. इस केंद्र के वन विभाग के सुंदरवन में बनाया गया है. खास बात ये कि तकनीकी प्रारूप वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा तैयार की गयी है. यहां आपको कई दुर्लभ प्रजाति के कछुओं के साथ ही डॉल्फिन, ऊदबिलाव के साथ ही पक्षी भी देखने को मिल जाएंगे.
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कछुआ पालना और तस्करी अपराध:भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कछुआ पालना एवं तस्करी को कानूनी अपराध की श्रेणी में रखा गया है.अगर कोई कछुआ पालता है या इसकी तस्करी करते पकड़ा जाता है तो इसके लिए कठोर कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है. इन सबके बावजूद कछुओं का शिकार किया जाता है. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शेड्यूल-1 में शेर, बाघ की तरह ही कछुए भी इसी श्रेणी में विलुप्त होने वाली प्रजाति के अंतर्गत आते हैं. इन्हें मारने पर 7 साल तक की सजा का हो सकती है. कछुओं को रेस्क्यू कर बचाने के लिए पूरे बिहार और झारखंड ( Bihar Jharkhand Turtle Rehab Centre In Bhagalpur) का मात्र एक कछुआ पुनर्वास केंद्र (First Turtle Rescue Center Of Bihar) है जहां कछुओं को संरक्षित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए जाते हैं. यहीं कारण है कि यहां कई प्रजातियों के कछुए पाए जाते हैं.
दुर्लभ कछुआ का विचरण केंद्र: गंगा के जल की स्वच्छत्ता को बनाये रखने के लिए गंगा एवं अन्य नदियों में कछुआ का रहना अति आवश्यक है इसलिए हमारी जिम्मेदारी भी है कि कछुआ के संरक्षण के लिए आगे आए. कछुआ की तस्करी और कछुआ को पालने की परंपरा को रोकने में सामाजिक दायित्व का निर्वहन करना बेहद जरूरी हो गया है. आपको बता दें भागलपुर गंगा के क्षेत्र में कई किलोमीटर तक दुर्लभ कछुआ का विचरण केंद्र है. कछुओं का यहां पूरा ख्याल रखा जाता है. साथ ही कई और जलीय जीव भी यहां की शोभा बढ़ाते हैं.
कछुओं का किया जाता है रेस्क्यू: कछुओं की बढ़ती तस्करी और विलुप्त हो रही प्रजाति को संरक्षित करने के लिए यह रेस्क्यू सेंटर कारगर साबित हो रहा है. भागलपुर में बनाए गए कछुआ पुनर्वास केंद्र और भागलपुर की गंगा में 60 किलोमीटर तक फैले गंगेटिक डॉल्फिन जोन में कछुओं का खास ख्याल रखा जाता है. सुल्तानगंज उत्तरवाहिनी गंगा से कहलगांव विक्रमशिला (65 किलोमीटर लम्बा और 6 किलोमीटर चौड़ा ) के मध्य की गंगा विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी (Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary) संरक्षित क्षेत्र है. यहां कई प्रकार के जलीय दुर्लभ जीव का वितरण क्षेत्र है. यह इसका आश्रय स्थली है. डॉल्फिन, ऊदबिलाव (Otter), कई प्रजाति के दुर्लभ कछुए, प्रवासी व स्थानीय प्रजाति की पक्षियां यहां रहते हैं.
जारी है तस्करी: तस्करों और आम लोगों के से रेस्क्यू किये गये कछुओं को कछुआ पुर्नवास केंद्र में स्वास्थ्य उपचार करने के बाद गंगा में छोड़ दिया जाता है ताकि धीरे धीरे इनकी संख्या में इज़ाफा हो सके. लेकिन साथ ही साथ भागलपुर और आसपास के गंगा में काफी संख्या में अमानवीय तरीके से हूक के माध्यम से शिकार धड़ल्ले से जारी है. कई किलोमीटर तक हजारों की संख्या में हूक लगाए गए हैं. भारी संख्या में कछुआ का बंगाल एवं निकटवर्ती राज्यों में तस्करी भी किया जाता है.