भरत मिलन कार्यक्रम में भक्तों का उमड़ा जनसैलाब भागलपुर:बिहार के भागलपुर जिले के नाथनगर थाना क्षेत्र में रामलीला मैदान गोल्डार पट्टी के द्वारा आजादी के पहले से मनसकामना नाथ चौक पर भरत मिलाप कार्यक्रम किया जा रहा है. 1846 से शुरू हुई इस परंपरा का इस साल 177 वां समारोह मनाया जा रहा है. भरत मिलाप कार्यक्रम देखने के लिए भक्तों का जन सैलाब उमड़ पड़ा. सभी लोग भक्ति रस में डूबे नजर आए.
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आजादी से पूर्व मनाया जा रहा भरत मिलाप:बता दें कि जिले के मनसकामना नाथ चौक पर आजादी से पूर्व भरत मिलाप का कार्यक्रम का आयोजन गोलदार पट्टी नाथ नगर के रामलीला कमेटी के द्वारा भरपूर हर्षोल्लास के साथ किया जाता है. रामलीला कमेटी के सदस्य अमरेंद्र नाथ भगत ने बताया कि दुर्गा पूजा के पहले से ही रामलीला मंच पर संपूर्ण राम चरित्र वर्णन से लेकर रावण दहन का नाटक रूपांतरण बाहर से आए हुए कलाकारों के द्वारा दिखाने के लिए तैयारी शुरू की जाती है और फिर इसका प्रसारण किया जाता है. यहां रामचंद्र के वनवास से लेकर रावण दहन और लंका से राम की अयोध्या वापसी तक का कार्यक्रम दिखाया गया.
नाटक के रूप में रामलीला पेश करते कलाकार रावण दहन के बाद भरत मिलन: रावण दहन का कार्यक्रम भागलपुर के जिला अधिकारी के द्वारा किया गया, इसके बाद अयोध्या आगमन पर भरत मिलाप का कार्यक्रम किया गया जो की गुरुवार की देर रात्रि समाप्त हुआ. इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में भाईचारा का संदेश देना है. भरत मिलन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए वरीय पदाधिकारी के दिशा निर्देश पर सुल्तानगंज और भागलपुर मुख्य सड़क मार्ग पर मनुष्य कामना नाथ चौक पर अस्थाई मंच बनाया गया था, जहां सुरक्षा के मद्देनजर काफी संख्या में पुलिस बलों की तैनाती की गई.
कार्यक्रम सफल बनाने में सराहनीय योगदान:कार्यक्रम संचालक की ओर से कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुओं को किसी बात की कोई परेशानी न हो इसका खास ख्याल रखा जाता है. कार्यक्रम को पूजा समिति, मंच कामना नाथ मंदिर कमेटी और शांति समिति के लोग काफी उत्साह के साथ शांतिपूर्ण तरीके से सफल बनाया गया. हर साल की तरह इस साल भी भरत मिलन कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया जिसमें भक्तों का जमघट लग गया.
भरत मिलन को लेकर निकाली गई शोभा यात्रा "भरत मिलाप के बाद वापस रामलीला मंच पर आकर भरत के द्वारा राम को गाड़ी सोंपी जाती है. यहां पर प्रत्येक साल घर से महिलाएं निकल कर राम जी की आरती, चंदन और वंदन करती हैं. पुष्पों की वर्षा की जाती है. 1846 से हमारे पूर्वजों के द्वारा यह परंपरा शुरू की गई थी जो आज भी चल रही है."- अमरेंद्र भगत, रामलीला कमेटी के सदस्य