भागलपुर:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे परियोजना (Namami Gange Programme) को पलीता लगाने में नगर निगम (Bhagalpur Municipal Corporation) कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. वह शहर से निकलने वाला कूड़ा-कचरा नदी में गिरा रहा है. मुसहरी घाट पर कूड़ा डंप होने से टीला बन गया है. एनजीटी (National Green Tribunal) के निर्देश पर निगम ने प्रतिमा विसर्जन के लिए मुसहरी घाट पर कृत्रिम तालाब बनाया है. इसके समीप भी निगम कूड़ा गिरा कर नदी को दूषित कर रहा है.
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कूड़ा गंगा की धार में प्रवाहित हो रहा है, जिससे गंगा में गंदगी फैल रही है. नदी किनारे गिराया गया कूड़ा बारिश और जलस्तर बढ़ने पर नदी में मिल जाता है. भागलपुर में गंगा को नगर निगम के कूड़े ने कितना नुकसान पहुंचाया है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1990 तक गंगा शहर के किनारे बहती थी. 2001 में विक्रमशिला सेतु का उद्घाटन हुआ था. तब तक नवगछिया की तरफ से यात्रियों को लेकर नाव आती थी. नाव शहर के किनारे घाटों तक पहुंचती थी. सेतु से जबसे आवागमन शुरू हुआ नाव परिचालन बंद हो गया. गंगा भी नवगछिया की तरफ लगभग ढाई किलोमीटर दूर चली गई.
इस दौरान नालों से बहने वाला गंदा पानी और कचरा गंगा में पहुंचता रहा. इसका असर यह हुआ कि गंगा पानी बरारी पुल घाट पर स्नान करने लायक नहीं रह गयी. वर्तमान में जलस्तर बढ़ने के चलते गंगा शहर के किनारे तक पहुंच गई है. भागलपुर में गंगा नदी में गंदा पानी प्रभावित होने के कारण तटवर्ती इलाके का पानी पीने लायक नहीं रह गया है. पानी में आर्सेनिक की मात्रा 10-50 पीपीबी (पार्ट पर बिलियन) से अधिक पाई जा रही है. किसी-किसी इलाके में 400 पीपीबी तक आर्सेनिक पाया जा रहा है. इसका खुलासा जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने किया है.
प्राथमिक जांच रिपोर्ट में पाया गया है कि भागलपुर जिले के गंगा तटीय इलाके राजपुर इंग्लिश, शंकरपुर, मिर्जापुर, घोषपुर और सुल्तानगंज में पानी में आर्सेनिक की मात्रा 25-100 पीपीबी तक पाई गई है. यह पानी पूरी तरह से दूषित है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भागलपुर के पानी की शुद्धता की जांच कर रही है. इसके तहत भागलपुर जिले के गंगा के तटीय और ऊपरी इलाके के पानी का 450 सैंपल लिया गया. यह सैंपल सरकारी चापाकल, नल जल योजना और निजी बोरिंग से लिया गया है. इसमें तटीय इलाके के 25 फीसदी सैंपलों में आर्सेनिक पाया गया. 2022 तक भागलपुर जिले के 900 स्क्वायर किलोमीटर एरिया तक पानी की जांच होगी. इसमें 460 स्क्वायर किलोमीटर तक सैंपल लिया जा चुका है. केंद्रीय लैब में इसकी जांच चल रही है, जिसकी रिपोर्ट 2022 के सितंबर में आएगी. इस जांच में पता चल जाएगा कि पानी में आर्सेनिक की मात्रा कहां कितनी है.
भारतीय वन्यजीव संस्थान स्पेयरहेड के गंगा प्रहरी दीपक कुमार ने कहा, 'दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि नगर निगम का सारा कचरा गंगा में प्रभावित किया जा रहा है. नाला का पानी और सूखा कचरा गंगा में जा रहा है. गंगा किनारे कूड़ा डंप किया जा रहा है जो बढ़ते जलस्तर के कारण गंगा में मिल जाता है. गंगा की सहायक नदी चंपा में कचरा डाला जाता है जो गंगा में आकर मिल जाता है. शहर के दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्र का गंदा पानी सीधे गंगा में बह रहा है.'