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Bamboo Tissue Culture Lab: बिहार में देश का पहला बम्बू टिश्यू कल्चर लैब, कैंसर में औषधि का काम करता है मीठे बांस

भागलपुर में वृहद पैमाने पर मीठे बांस की खेती (Cultivation Of Sweet Bamboo In Bhagalpur) की जा रही है. मीठा बांस कैंसर में औषधि का काम करता है. यहां जाने क्या बम्बू टिश्यू कल्चर लैब...

बम्बू मैन ऑफ बिहार
बम्बू मैन ऑफ बिहार

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 16, 2023, 2:20 PM IST

बिहार में मीठे बांस का पौधा

पटना: बिहार मेंतिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय अंतर्गत टीएनबी कॉलेज में देश का पहला बम्बू टिश्यू कल्चर लैब है जहां मीठे बांस के पौधे बड़े पैमाने पर तैयार किया जा रहे हैं. इस मीठे बांस के पौधे को पूरी तरह से व्यावसायिक रूप में लाने के लिए तैयार किया जा रहा है, वन विभाग भी इसमें अहम भूमिका निभा रही है. यहां के बम्बु टिशु कल्चर लैब से तैयार मीठे बांस के पौधे छपरा, सिवान, पूर्णिया सहित कई जगहों पर भेजे गए हैं.

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भागलपुर में देश का पहला टिशू कल्चर लैब: पहले मीठे बांस का पौधा सिर्फ जंगल-झाड़ियों में देखने को मिलता था. हांलाकि अब इसकी खेती की तरफ किसान आकर्षित हो रहे हैं. वहीं भागलपुर में देश का पहला टिशू कल्चर लैब है जो बड़े पैमाने पर बांस के कई किस्म के पौधे को तैयार कर रहा है, उसमें सबसे खास,मीठे बांस का पौधा है.

टीएनबी कॉलेज में बम्बू टिश्यू कल्चर लैब

कैसे तैयार होता है मीठे बांस का पौधा: तिलकामांझी विश्वविद्यालय में बिहार सरकार के वन विभाग द्वारा स्पॉन्सर्ड लैब है. पहले बांस के टिशू को शोध कर रहे छात्रों द्वारा यहां तैयार किया जाता है. जब यह तकरीबन 3 फीट के हो जाते हैं तब उसे वन विभागों को सौंप दिया जाता है, वन विभाग से लोग बिहार के अलग-अलग जिलों तक इसे ले जाते हैं.

बम्बू मैन ऑफ बिहार

देश का पहला बम्बू टिश्यू कल्चर : बम्बू मैन ऑफ बिहार व टिशू कल्चर लैब के नाम से मशहूर हेड प्रोफेसर डॉ. अजय चौधरी ने बताया कि भारत का यह पहला लैब है जिसमें इतने बड़े पैमाने पर बांस का उत्पादन किया जा रहा है. एक बार में लगभग 2 लाख पौधों को तैयार किया जाता है. वहीं इसकी खेती करने पर किसानों को दोगुना मुनाफा भी होता है. एक बार की लागत से करीबन 100 साल से भी ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. बंजर जमीन और वैसी जमीन जहां पर अन्य खेती होने की संभावना नहीं है वहां पर भी कई किस्म के बांस की खेती संभव है, सनातन धर्म में बांस की महत्वता काफी अधिक है.

देश का पहला बम्बू टिश्यू कल्चर

"पूरे बिहार में खासकर मीठे बांस की खेती होती है तो बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल जाएगी क्योंकि मीठे बात से अचार चिप्स कटलेट के अलावे कैंसर की दवाइयां भी तैयार की जा रही है, खासकर बांस की कई प्रजातियों का प्रयोग चीन ताइवान सिंगापुर जैसे देशों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है."-डॉ. अजय चौधरी, बम्बू मैन ऑफ बिहार

किसानों के लिए खेती के लिए मिलेंगे रुपये: पीटीसीएल के परियोजना निदेशक प्रोफेसर डॉ अजय चौधरी ने बताया कि राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस मिशन के अंतर्गत वन विभाग मीठे बांस के पौधे बड़े पैमाने पर लगवा रहा है. किसानों को वन विभाग से 10 रुपये में यह पौधे मिलेंगे, 3 साल बाद इन पौधे की फिर जांच की जाएगी यदि किसानों द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत से अधिक पौधे बचे रहते हैं तो वन विभाग की ओर से देखभाल के लिए प्रति पौधा 60 रुपये दिए जाएंगे और बांस के पौधे की मूल कीमत भी वापस कर दी जाएगी.

कैंसर रोग में करता है औषधि का काम

बांस से तौयार होता है एथेनॉल:पर्यावरण की दृष्टिकोण से भी बांस काफी अच्छा होता है, क्योंकि इसका पौधा सबसे अधिक तेजी से बढ़ता है जिस वजह से यह ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड एब्जॉर्ब करता है और ऑक्सीजन की मात्रा अधिक देता है और इस वजह से हमारे पर्यावरण को लाभ पहुंचता है. वहीं इसकी खेती से बिहार में उद्योग को भी बढ़ावा मिल सकता है. बांस का उपयोग पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर व इससे दैनिक जीवन में इस्तेमाल करने वाले समान को भी बनाया जा सकता है. वहीं बांस से एथेनॉल भी अधिक मात्रा में तैयार होता है.

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