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बेगूसराय: एक ऐसा विद्यालय जहां पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को खेती के भी सिखाए जाते हैं गुर - जमीन का सदुपयोग

खास बात यह है कि यह वही विद्यालय है जहां कभी कन्हैया कुमार ने तालीम ली थी. क्लास में पढ़ाई के साथ-साथ कृषि संबंधित जानकारी पाकर बच्चे काफी उत्साहित हैं.

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Published : Jul 13, 2019, 5:49 PM IST

बेगूसराय: बच्चों के सर्वांगिक विकास के लिए बेगूसराय का विद्यालय एक अनूठी पहल कर रहा है. यहां पढ़ने वाले बच्चों को अब शिक्षा के साथ-साथ खेती के भी गुर सिखाए जा रहे हैं. स्कूल प्रबंधन ने इसके लिए परिसर में ही कुछ जमीन तय कर दी है. जहां बच्चे खेती करना सीख रहे हैं.

यह स्कूल जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर बिहट गांव में स्थित है. इसका नाम मध्य विद्यालय मसनदपुर है. यहां वर्ग 6 से 8 तक के बच्चों को जमीन का एक छोटा टुकड़ा स्कूल की तरफ से दिया गया है. जिसमें वो मनपसंद सब्जी उपजाते हैं. क्लास में पढ़ाई के साथ-साथ कृषि संबंधित जानकारी पाकर बच्चे काफी उत्साहित हैं. खास बात यह है कि यह वही विद्यालय है जहां कभी कन्हैया कुमार ने तालीम ली थी.

मनपंसद सब्जियां उगा रहे बच्चे

सामाजिक शिक्षा सीखा रहा विद्यालय
जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर बिहट गांव स्थित मध्य विद्यालय मसनदपुर में आज बच्चों को सामाजिक शिक्षा के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनना भी सिखाया जा रहा है. गौरतलब है कि यह जिले का पहला ऐसा स्कूल है, जहां के बच्चे पढ़ते भी हैं और साथ में स्कूल के मध्यान भोजन के लिए सब्जी भी उगाते हैं.

'पोषण वाटिका' रखा गया है नाम
स्कूल परिसर में बने इस सब्जी उद्यान का नाम 'पोषण वाटिका' रखा गया है. जिसमें पोषण के लिए आवश्यक सभी सब्जियां उगाई जाती हैं. लगभग 3 महीने पहले यह विद्यालय भी आम सरकारी विद्यालय की तरह ही था. पढ़ने के लिए कमरों की संख्या भी कम थी और सामने के डेढ़ कट्ठा जमीन में जंगल उग आया था. स्कूल की प्रचार्या कुमारी पूनम बताती हैं पहले तो उस जमीन पर भवन बनाने का प्रयास किया गया. जिसके संबंध में जिला शिक्षा पदाधिकारी को लिखित आवेदन भी दिया गया. लेकिन, जब उस जमीन पर भवन निर्माण नहीं हो पाया तो सभी ने उसका सदुपयोग करने की सोची.

बच्चों में खासा उत्साह

जंगल साफ कर बनाया बगान
जिसके बाद जंगल साफ कराकर ट्रैक्टर से जुतवाया गया. उसमें छोटी-छोटी क्यारियां बना दी गयी. बच्चों के अभिभावक इसको लेकर कोई गलत धारणा न बना लें, इसलिए 6-8 वर्ग के बच्चों से उनकी इच्छा पूछी गयी. जिन बच्चों ने स्वेक्षा से खेती सीखने की सहमति दी, उन्हें छोटे-छोटे जमीन के टुकड़े आवंटित किए गए.

पहले सिखाए गए खेती के गुर
जमीन का टुकड़ा मिलने के बाद पहले खेती कैसे की जाती है इसकी जानकारी बच्चों को दी गई. उसके बाद पढ़ाई के जरिए उन्हें तकनीकी जानकारी दी गई. फिर बच्चे खुद सीखते चले गए. प्रचार्या ने बताया कि बच्चों को उनके ही चॉइस के हिसाब से सब्जियां उगाने को कहा गया. जिसके बाद बच्चों ने छुट्टी के बाद और टिफिन में इसकी देखभाल शुरू की. लगातार सेवा करने के कारण परिणाम भी दिखने लगा और देखते ही देखते 2 महीने में खेत सब्जियों से भर गया.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

साग और सब्जी की होती है खेती
प्रिंसिपल कहती हैं कि स्कूली बच्चों को अब खेती के गुण मालूम हो चुके हैं. यही कारण है कि अब उनके पोषण वाटिका में लाल साग, पुदीना, कद्दू, नैनुआ, बिंस, बोरा, भिंडी, पालक की फसल लहलहा रही है. प्रचार्या ने बताया कि गर्मी छुट्टी के दौरान विद्यालय 1 माह से ज्यादा तक बंद था. लेकिन, खेती करने वाले बच्चे छुट्टी के दौरान भी आकर अपने फसल की देखरेख करते थे.

कुपोषण से मिलेगी मुक्ति
ज्यादातर ग्रामीण इलाकों के सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियां उनके सेहत के लिए काफी गुणकारी साबित हो रही हैं. नतीजतन कुपोषण का खतरा भी कम हो रहा है.

बच्चों में गजब का उत्साह
विद्यालय की प्रधानाचार्य कुमारी पूनम के प्रयास की सराहना विद्यालय के तमाम बच्चे करते हैं. उनके मुताबिक ना सिर्फ वह खेती के गुर सीख रहे हैं बल्कि खाली समय का सदुपयोग भी हो रहा है. टिफिन के दौरान जब बच्चों की आपस में लड़ाई होती थी तो स्कूल प्रशासन के साथ-साथ बच्चे भी तनाव में होते थे. अब वही बच्चे उस खाली समय का उपयोग खेती के कार्य में मिल-जुलकर एकता के साथ कर रहे हैं.

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