बेगूसराय: एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की बेगूसराय स्थित कावर झील अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. सैकड़ों साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब हजारों एकड़ में फैली यह कावर झील अब पूरी तरह से सूख चुकी है. वन्य प्राणियों और प्रवासी पक्षियों की शरण स्थली के साथ-साथ बिहार के प्रसिद्ध पर्यटन स्थली भीषण संकट के दौर से गुजर रही है.
लोकसभा चुनाव समाप्त हो चुका है. देश की सबसे हॉट सीट मानी जा रही बेगूसराय के चुनाव में, एक तरफ जहां बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह थे, तो दूसरी ओर जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व सीपीआई प्रत्याशी के रूप में कन्हैया कुमार ताल ठोक रहे थे. हॉट सीट होने के कारण देश के तमाम बड़े नेता ,सेलिब्रिटी और फिल्म अभिनेता बेगूसराय आए और चुनावी भाषण देकर उड़न खटोले पर सवार होकर वापस लौट गए. लेकिन 2 महीने के चुनावी शोर में बेगूसराय की स्थानीय और विकास से जुड़े मुद्दे गुम हो गए.
किसान और नाविक परेशान
बेगूसराय का सबसे ज्वलंत मुद्दा अगर कोई है तो वह है कावर झील. प्रशासन की लापरवाही, सरकार के सक्षम निर्णय ना लिए जाना, जिले का गौरवशाली इतिहास होने के बावजूद, कावर झील को बड़े पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जा सका. इसका दर्द आज यहां के किसान और नाविक झेल रहे हैं.
सबसे बड़ी पर्यावरण दुर्घटना
दुसरी ओर भीषण गर्मी और बारिश ना होने के कारण ख्याति प्राप्त कावर झील अब अस्तित्व विहीन होने के कगार पर है. शायद यह सुनकर आपको अटपटा जरूर लगेगा. लेकिन यह जमीनी हकीकत है. वर्तमान में एशिया की सबसे बड़े मीठे पानी की झील किस कदर सूख चुकी है. बेगूसराय में इस वक्त पर्यावरण के लिहाज से यह सबसे बड़ी दुर्घटना मानी जा सकती है.
छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर गई झील
कभी 15,000 एकड़ में फैली कावर झील, इस वर्ष दस-दस एकड़ के कुछ टुकड़ों में सिमटकर सूखती चली गई और अब अंत में पूरी तरह से यह सूख चुकी है. कावर झील के पानी मे ना अब मछलियों की अठखेलियां दिखाई दे रही है और न ही प्रवासी पक्षियों के झुंड और खूबसूरती. जहां तक नजरें घुमाइये, वहां तक दिखाई दे रहा है तो सूखा इलाका.
चीख रही ये नाव, सुना रही आपबीती
झील में पड़े दर्जनों नाव और सरकारी बोट जिससे पर्यटक कावर झील का नजारा अपने कैमरे में कैद करते थे. वो चीख-चीख कर अपनी आपबीती सुना रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम ने स्थानीय कुछ समाज सेवी और लोगों से बात की. तो उनके मुताबिक सैकड़ों वर्ष के इतिहास में ऐसा पहला मौका आया है, जब कावर झील पूरी तरह से सूख चुकी है. ना सिर्फ मछलियों की कई प्रजातियां बल्कि प्रवासी पक्षियों के जान पर आफत है. बल्कि पर्यटन से जुड़े धंधे में संलिप्त स्थानीय लोग भी अब भुखमरी के कगार पर हैं. लेकिन ना ही स्थानीय प्रशासन और ना ही सरकार इस पर ठोस कदम उठा रही है.
क्या होगा झील के अस्तित्व का?
बहरहाल, जो भी हो इतना तय है कि प्रसिद्ध कावर झील का अस्तित्व पूर्ण रूप से खतरे में है. अब देखने वाली बात यह है कि संकट के इस दौर में स्थानीय प्रशासन और सरकार के तरफ से इस धरोहर को बचाने के लिए कुछ प्रयास किया जाता है. या फिर एशिया का प्रसिद्ध कावर झील अब स्थाई रूप से अपना अस्तित्व खो देगी.