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मिट्टी के दीयों का सिकुड़ रहा बाजार, लेकिन पुश्तैनी पेशा को बचाने में जुटे हैं कुम्हार

मिट्टी कलाकार शम्भू पंडित ने बताया कि उनके परदादा के समय से ये पुश्तैनी कलाकारी वो सीखते आए हैं. पूर्वजों ने इसी के सहारे अपना जीवन यापन किया. उन्होंने कहा कि किसी भी हाल में विरासत में मिली पुश्तैनी कला को छोड़ नहीं सकते हैं. भले ही इसमें नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े.

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Published : Oct 26, 2019, 10:53 AM IST

दीपावली में बेगूसराय के बाजार में चाइनिज सामानों ने किया कब्जा

बेगूसराय: जिले में दीपावली के मौके पर पहाड़ चक गांव में सैकड़ों की संख्या में मिट्टी कलाकार दीप और दीये के पुश्तैनी व्यवसाय को आज भी आगे ले जाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती चाइनीज उत्पाद बन गया है. बाजार में चाइनीज आइटम ने मिट्टी का वस्तु बेचने वालों की रोजी रोटी तक छीन ली है.

चाइनीज समानों ने बाजार पर किया कब्जा
दरअसल, जिले के पहाड़ चक गांव में दीपावली की तैयारी हर साल की तरह की तो जा रही है, लेकिन उनके मिट्टी के वस्तुओं की मांग घटने से उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. दीपावली पर मिट्टी से निर्मित दीप, दीये, दीपली की मांग बाजार में अत्यधिक होती है. लेकिन हाल के दिनों में जिस तरीके से चाइनिज सामानों ने बाजार पर कब्जा किया है. इससे मिट्टी के कलाकारों के रोजी-रोटी पर खतरा बना हुआ है.

पुश्तैनी कला को बचाने में लगे हैं कलाकार

मिट्टी के कलाकारों रोजी-रोटी छीनी
एक वह दौर था जब मिट्टी के कलाकार दीपावली की कमाई से साल भर घर चलाते थे और अब मिट्टी के कलाकारों को दो जून की रोटी मय्यसर नहीं हो पा रही है. ऐसे में मिट्टी के कलाकारों ने मोदी सरकार से गुहार लगाई है कि मोदी सरकार बाजार में चाइनीज आइटम को आने से रोके ताकि इस पेशे में शामिल लोगों की रोजी-रोटी न छिने.

'खरीदार हुए कम कैसे मनाएं दीवाली'
मिट्टी के कलाकार विकास कुमार ने बताया कि मिट्टी तेल की कमी के कारण दीपली निर्माण बंद हो गया है. वहीं दीप और दीये के विकल्प में चायनीज उत्पादों के बाजार में उपलब्ध होने के कारण मिट्टी के दिए और दीप खरीदने वाले खरीदार काफी कम संख्या में मिलते हैं. उन्होंने कहा कि बिक्री तो होती है लेकिन उससे उतनी नहीं जिससे कि जीवनयापन किया जा सके.

दीपावली में बाजार में चाइनीज सामानों का दबदबा

पुश्तैनी कला को छोड़ना मुश्किल
मिट्टी कलाकार शम्भू पंडित ने बताया कि उनके परदादा के समय से ये पुश्तैनी कलाकारी वो सीखते आए हैं. पूर्वजों ने इसी के सहारे अपना जीवन यापन किया. उन्होंने कहा कि किसी भी हाल में विरासत में मिली पुश्तैनी कला को छोड़ नहीं सकते हैं. भले ही इसमें नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े.

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