बेगूसराय:समुद्र में होने वाले सीप और मोतियों की खेती अब बिहार के खेतों में भी दिखने लगी है. अब किसान लगातार कुछ न कुछ नया करते हैं. यही वजह है कि अब बिहार में पर्ल फार्मिंग की शुरुआत (Pearl farming started in Bihar) हुई है. बेगूसराय जिले के सिंघौल के रहने वाले युवा कुणाल कुमार अच्छी पैकेज पर मल्टी नेशनल कंपनी में अपना त्यागपत्र देकर मोती उत्पादन शुरू कर दिया है. अपने बेटे के फैसले और उनकी आत्मनिर्भरता से पिता रामचंद्र झा भी खुश हैं.
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बेगूसराय में मोती की खेती: दरअसल, लंबे समय से किसान पारंपरिक खेती करते आ रहे हैं. आम तौर पर किसान सब्जी और अनाज का उत्पादन ही करते हैं. लेकिन आज के समय में अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं. इसी प्रयोग में मोती उत्पादन को आप शामिल कर सकते हैं. इस प्रयोग को आप अधिक आय देने वाली फसलों का उदाहरण दे सकते हैं. कुछ हटकर और अलग करने की चाह मोती अच्छा विकल्प बनकर उभरा है. इसका उत्पादन कर लाखों में आमदनी प्राप्त कर रहे हैं.
10 माह में तैयार होता है मोती:युवा उत्पादक कुणाल झा के मुताबिक मोती एक प्राकृतिक रत्न है, जो शिप से पैदा होता है. बाहरी कणों के शिप के अंदर प्रवेश करने से मोती का निर्माण होता है. मोती तैयार होने में लगभग 10 माह का समय लग जाता है. मोती की गुणवत्ता के अनुसार उसकी कीमत तय होती है. एक सामान्य मोती का दाम 500 से 1500 रुपए तक होता है. वहीं डिजायनर मोती के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में 10 हजार रुपए तक का दाम मिल सकता है.
डिजायनर मोती तैयार करते हैं कुणाल:युवा मोती उत्पादक कुणाल झा ने बताया कि जापान की टेक्नोलॉजी से एक छोटी सी सर्जरी कर राम भगवान, कृष्ण भगवान के आकार का फार्मा डालते हैं. इस फार्मा से डिजाइन वाले मोटी तैयार होती है. समंदर में सीपियां के अंदर बालू का कण जाने के कारण गोल मोती तैयार होता है. इन दिनों कुणाल मनचाहा मोती तैयार कर रहे हैं, जिसके बाजार में भी काफी डिमांड है.