बेगूसराय: हाईकोर्ट ने जिला पुलिस की तानाशाही और लापरवाही पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. पुलिस ने एक बुजुर्ग के बेटों को हत्याकांड में अभियुक्त बनाकर उसकी संपत्ति की कुर्की की थी. इसके बाद कोर्ट ने पुलिस को मुआवजा देने का फरमान सुनाया है.
एक कॉमन मैन का बड़ा एक्शन बेगूसराय में देखने को मिला है. जिले में हुए हत्याकांड में बेटों को फंसा कर बुजुर्ग पिता की अर्जित संपत्ति को पुलिस ने कुर्क कर लिया था. कुर्की किए गए सामान में से आधे से ज्यादा सामान थाने से गायब हो गये और बाकी बचा बर्बाद हो गया. इसके बाद पीड़ित ने हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई. पीड़ित ने बताया कि पूरी संपत्ति में उसके बेटों का कोई हिस्सा नहीं था.
क्या था मामला
जिला मुख्यालय स्थित प्रोफेसर कॉलोनी के पशुपति राय के बेटे की शादी वर्ष 2014 में हुई थी. जिस दिन वो अपने बेटों के साथ शादी में शामिल थे, उसी रात बीरपुर थाना क्षेत्र में एक युवक की हत्या हो गयी. मामले में पुलिस ने पशुपति राय के दोनों बेटे को आरोपी बनाते हुए मुकदमा ठोक दिया.
जानकारी देते पीड़ित और पुलिस अधिकारी झूठा केस
इस हत्याकांड में पीड़ित पशुपति राय ने बताया कि जिसकी शादी हो वो भला कैसे हत्या कर सकता है. वहीं, उन्होंने बताया कि कोर्ट ने भी इस बात पर गौर किया है. इसके बाद पीड़ित ने बताया कि गिरफ्तारी से बचने के लिए दोनों बेटे घर से बाहर चले गए थे. लिहाजा पुलिस ने पशुपति राय की संपत्ति की कुर्की कर दी.
एक चम्मच तक नहीं छोड़ा
पीड़ित पशुपति ने बताया कि कुर्की करने आए पुलिस बल ने एक चम्मच तक घर में नहीं छोड़ा. वहीं, पुलिस ने 16 ट्रैक्टर सामान और एक नई गाड़ी जो पशुपति राय ने अपने शिक्षण संस्थान के नाम से ली थी. सब नगर थाना के मालखाने में जमा कर दी.
चार साल चला केस
पुलिस की इस कार्रवाई के बाद पशुपति राय ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. चार साल बाद उनके घर के कई सामान मालखाने से चोरी हो गये या फिर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. लिहाजा कोर्ट के आदेश के बाद तत्काल 2 लाख 43 लाख रुपये पीड़ित को दिए गए हैं. बाकी अन्य क्षतिग्रस्त सामान के भारपाई का आदेश कोर्ट ने दिया है. वहीं, दोनों बेटों को कोर्ट की तरफ से बेल मिल चुका है.
पीड़ित ने कोर्ट को दिया धन्यवाद
कोर्ट के आदेश के बाद पीड़ित पशुपति राय ने न्यायालय को धन्यवाद दिया. उन्होंने पुलिस के लिए इस फैसले को एक सबक बताया है. वहीं मामले की जांच कर रहे मुख्यालय डीएसपी भी इसे पुलिस की बड़ी लापरवाही बताते हैं और न्यायपालिका द्वारा दिये गये आदेश को भविष्य के लिए मील का पत्थर बताते हैं.