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बेगूसराय से लापता हुई मां-बेटी डेढ़ साल बाद हरियाणा में मिली, ऐसे हुआ खुलासा - छछरौली बालकुंज मां बेटी मिली यमुनानगर

यमुनानगर के छछरौली बालकुंज से 6 साल की बच्ची अपने परिजनों के साथ अपने घर के लिए विदा हुई. करीब डेढ़ साल पहले अपनी मानसिक रूप से पीड़ित मां के साथ बच्ची अपने घर से लापता हो गई थी. जिसकी शिकायत बिहार के बेगूसराय जिले के बखरी पुलिस थाना में दर्ज की गई थी.

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Published : Apr 8, 2021, 9:25 PM IST

यमुनानगर/बेगूसराय: जिले के छछरौली स्थित बालकुंज नामक संस्था लावारिस नाबालिग बच्चों को उनके घर जैसा माहौल देने का काम करती है. यहां बच्चों के खान-पान से लेकर उनकी शिक्षा तक का खर्च संस्था उठाती है और बालकुंज संस्था बच्चों की काउंसलिंग कर उन्हें उनके घर तक पहुंचाने का भी काम करती है. इसी कड़ी में सोमवार को बालकुंज इंचार्ज मोना चौहान के प्रयासों से 6 साल की बच्ची करीब डेढ़ साल बाद अपने परिजनों से मिली.

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दरअसल करीब डेढ़ साल पहले ये बच्ची मानसिक रोगी अपनी मां के साथ बिहार के बेगूसराय जिले के बखरी गांव के घर से लापता हो गई थी. जिसके बाद मानसिक रूप से पीड़ित इसकी मां नीरू को समाज सेविका मोना चौहान द्वारा करीब 6 महीने पहले पुलिस की मदद से यमुनानगर के कलानौर से रेस्क्यू कर भिवानी से अपने घर भेजा गया था, और इस बच्ची को बालकुंज छछरौली में रखा गया था.

पेश है रिपोर्ट

बच्ची को किया परिजनों के हवाले

वहीं इसकी मां से जब ठीक होने पर अपना घर भिवानी ने काउंसलिंग की, तो पता चला कि ये बिहार के बेगूसराय जिले की निवासी है. जिसके बाद इसके परिवार को सूचित किया गया और इसका परिवार पहले भिवानी अपना घर से बच्ची की मां को लेकर आया और उसके बाद छछरौली बालकुंजपहुंचा. जहां से मोना चौहान ने बच्ची को परिजनों के हवाले कर दिया.

डेढ़ साल पहले हुई थी गायब

वहीं बच्ची के पिता ने बताया कि करीब डेढ़ साल पहले वो जब काम के लिए घर से बाहर गया हुआ था. तो शाम को लौटने पर उसे उसकी मानसिक रूप से पीड़ित पत्नी और बच्ची गायब मिली. जिसके बाद उसने काफी तलाश की और ना मिलने पर पुलिस को शिकायत दी थी और आज उनकी बच्ची और पत्नी सकुशल मिल चुके हैं.

बच्चों को दी जाती है अच्छी परवरिश

बता दें कि, जिस वक्त बच्चे का परिवार उसे लेने बालकुंज छछरौली पहुंचा. तो वह जाने को राजी नहीं थी. क्योंकि वह बालकुंज के बच्चों के साथ घुल मिल चुकी थी. हालांकि दो दिन पहले ही वीडियो कॉल कर उसने अपने पिता से भी बात की थी. इस पर बालकुंज इंचार्ज मोना चौहान कहती हैं कि यहां पर बच्चों को इस तरह परवरिश दी जाती है कि बच्चों का यहां पर मन लग जाता है लेकिन अपनों से मिल जाने के बाद उन्हें भेजना जरूरी हो जाता है

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