बेगूसराय: तालाब को स्विमिंग पुल और पिता को कोच बनाकर नेशनल तैराक बनी पायल पंडित सरकारी उदासीनता के कारण काफी आहत हैं. पायल पंडित का दावा है कि सरकार अगर उनकी मदद करती तो, वो ओलंपिक पदक लाने का माद्दा रखती हैं.
पायल यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर भी रही
जिले के वीरपुर प्रखंड की पायल पंडित की यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं. पायल ने अपने पिता से तैराकी सीखी, वह 2006 से 2007 तक यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर रही. बेगूसराय की पायल को 4 वर्ष की उम्र से ही पानी से काफी लगाव था.
तालाब में प्रैक्टिस करती पायल पंडित पिता ने ठाना बेटी को बनाएंगे तैराक
बेटी पायल को पानी से लगाव देख पिता के मन में ख्याल आया कि एक दिन मैं अपनी बेटी को इंग्लिश चैनल के लिए तैयार कर लूंगा. पिता की तमन्ना और बेटी की जिद ने 2005 में कला संस्कृति युवा विभाग द्वारा पहली बार जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल कर राज्य स्तर के लिए चुनी गई. तब वो सात साल की थी.
पायल पंडित और उनके पिता से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता तैराकी में हमेशा रही आगे
जिसके बाद पायल के पिता गांव के तालाब में लगातार प्रैक्टिस कराने लगे. लगातार स्कूली गेम में अव्वल आने वाली पायल अब नेशनल स्तर की तैराक बन चुकी थी. यही कारण था कि वर्ष 2007 से 2014 तक पायल राज्य चैंपियन रहीं. इसी दौरान 2006 में पुणे में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में पायल को सातवां स्थान मिला, लेकिन पायल के संघर्ष की कहानी और छोटी उम्र में कुछ करने की जिद को देख यूनिसेफ ने अपने कैलेंडर का ब्रांड एंबेसडर बना दिया और इस बार के लोकसभा चुनाव में जिलाप्रशासन ने उसे स्वीप आइकॉन बनाया.
बेगूसराय से आशीष कुमार की स्पेशल रिपोर्ट बचपन से है ओलंपिक का शौक
ईटीवी भारत से खास बातचीत में पायल ने बताया कि उसे बचपन से ही ओलंपिक में जाने का शौक था. पिता का साथ मिलने के बाद उसका हौसला और भी बढ़ता गया. यही कारण है कि अब तक वह 14 नेशनल गेम खेल चुकी है. वर्ष 2016 में पटना में हुए एक्वथोलान स्विमिंग में भाग ली थी. जिसमें 6 किलोमीटर तैरना पड़ता है और 5 किलोमीटर दौड़ना पड़ता है.
पैसे के अभाव में गांव के तालाब में प्रैक्टिस
पायल ने बताया कि नेशनल से आगे जाने के लिए उसे अब उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है, लेकिन परिवार की आर्थिक कमजोरी से उसके लिए यह संभव नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण वह भी अपने पिता के सानिध्य में गांव में ही प्रैक्टिस कर रही है. पायल कहती हैं कि अगर उन्हें सरकार की मदद मिले तो वो ओलंपिक में मेडल ला सकती हैं.
पायल के पिता क्या कहते हैं
वहीं, पायल के पिता मधुसूदन पंडित कहते हैं कि, एक समय था जब गांव के लोग ताना मारते थे. तरह-तरह की अफवाहें बेटी को लेकर फैली, लेकिन बावजूद इसके अपनी बेटी को नदी में ले जाना बंद नहीं किया. हालांकि 2010 में सोचा कि इससे सच में कुछ होने वाला नहीं है, इसलिए बेटी को पॉलिटेक्निक की तैयारी करवाई और सेलेक्ट होने पर उसे पढ़ने भेज दिया, लेकिन पायल ने प्रैक्टिस नहीं छोड़ा.
सरकारी मदद की आस
पायल के पिता कहते हैं कि पायल अब पढ़ाई के साथ-साथ स्विमिंग की तैयारी भी कर रही है, लेकिन इन सबके बीच पिता का भी दर्द झलक आया. वह कहते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण यहां से आगे की लड़ाई पायल नहीं लड़ पा रही है. सरकार तैराकी के लिए उत्साहित युवक-युवतियों के लिए कोई मदद नहीं कर रही है.
बेगूसराय में एक स्विमिंग पूल तक नहीं
पिता ने कहा कि बेगूसराय में एक स्विमिंग पूल तक नहीं है, कोच और प्रशिक्षण की बात तो दूर की है. उन्होंने सरकार के रवैए से काफी नाराजगी जताई, और साफ तौर पर कहा कि सरकार प्रतिभाओं का गला घोटने पर आमादा है. अगर यही हालात रहे तो नेशनल तैराकी तक जलवा बिखेरने वाली पायल पंडित जैसों की उम्मीद गांव में ही दम तोड़ देगी.