बेगूसराय:देश को स्वतंत्र कराने में बेगूसराय का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है. इतिहास के पन्नों में दर्ज ऐसे कई हस्ती हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे करने में अपनी जान की परवाह नहीं की. ऐसी ही एक शख्सियत का नाम मंझौल के रामेश्वर प्रसाद सिंह हैं. जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए अंग्रेजों को ऐसा जवाब दिया कि उनकी सारी मूंछें उखाड़ ली थी.
बताया जाता है कि जेल में 18 महीने की यातना सहने वाले रामेश्वर प्रसाद सिंह को अंग्रेजो ने कांटे की सेज पर सुलाया. इतना ही नहीं अंग्रेज सिपाहियों ने उनके सीने पर बूट रखकर उनकी एक-एक मूंछ उखाड़ ली थी. इस घटना के बाद रामेश्वर प्रसाद सिंह बुरी तरह से घायल हो गए. उन्होंने कई दिनों तक खाया-पीया नहीं था. बावजूद इसके रामेश्वर प्रसाद सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने सिर नहीं झुकाया.
इस तरह अंग्रेजों को चटाई धूल
महात्मा गांधी के आह्वान पर चल रहे सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने मंझौल निवासी 30 वर्षीय रामेश्वर प्रसाद सिंह 1931 में भागलपुर के बिहपुर पहुंचे थे. गोरा बदन, गठीला शरीर, कड़ी-कड़ी मूछें और महात्मा गांधी के जय स्वराज जिंदाबाद का नारा लगाने वाले रामेश्वर प्रसाद सिंह को अंग्रेज सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया. इस दौरान भागलपुर के तात्कालिक मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा 'आजादी'. तब मजिस्ट्रेट ने उनसे उनके पिता का नाम पूछा तो फिर से रामेश्वर ने कहा 'आजादी'. इस पर अंग्रेज आग बबूला हो उठे.
रामेश्वर प्रसाद सिंह की तस्वीर दिखाते परिजन दिया मूंछ उखाड़ने का आदेश
हर सवाल के जवाब में आजादी सुनकर अंग्रेज मजिस्ट्रेट को बहुत गुस्सा आया. उन्हें ये जवाब इतना बुरा लगा कि उन्होंने यातना के रूप में उनकी सारी मूंछें उखाड़ लेने का आदेश दिया. इस घटना के बाद भी रामेश्वर अंग्रेजों के सामने नहीं झुके. 1931 की इस घटना के बाद रामेश्वर दो बार जेल गए और देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे. देश प्रेम से लबरेज रामेश्वर सिंह इससे पहले अंग्रेजों की लाठी के शिकार हो चुके थे. बावजूद इसके उन्होंने स्वराज जिंदाबाद का नारा लगाना बंद नहीं किया.
'स्वतंत्रता के लिए फांसी भी मंजूर'
रामेश्वर ने अंग्रेजों के सामने कहा था कि वे देश की स्वतंत्रता के लिए के लिए फांसी पर चढ़ना भी पसंद करेंगे. देश की स्वतंत्रता के बाद रामेश्वर प्रसाद सिंह ने सरकार से किसी भी तरह की पेंशन या दूसरी सहायता लेने से इनकार कर दिया. इस संबंध में रामेश्वर सिंह के पुत्र का कहना है कि अब सत्ता में बैठे लोगों को ही लोग पूछते हैं. उनके बेटे की मानें तो उन्हें और उनके गांव के लोगों को रामेश्वर सिंह पर फक्र है. जिन्होंने देश की स्वतंत्रता में अपना बहुमूल्य योगदान दिया.