बेगूसराय: बेगूसराय में समय के साथ-साथ कल्पवास मेले की रौनक दिनों दिन बढ़ती जा रही है. सिमरिया के गंगा तट पर 18 अक्टूबर से 27 नवंबर तक चलने वाले कल्पवास को लेकर दूर-दराज के लोगों के पहुंचने का सिलसिला जारी है. बताते चलें कि उत्तरवाहिनी गंगा तट पर स्थित सिमरिया धाम मिथिलावासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है, ऐसे आयोजनों से इस स्थल को व्यापक प्रसिद्धि मिली है.
मेले की क्या है मान्यता:कल्पवास मेला एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, जो युगों-युगों से कल्प और कल्पान्तर से आ रही है. इस मेले के दौरान, भक्तजन पवित्र गंगा के किनारे बसकर तपस्या और पूजा करते हैं. इसका इतिहास राजा जनक जैसे प्रमुख व्यक्ति के धार्मिक कार्यों से जुड़ा है, जिन्होंने मोक्ष की प्राप्ति के लिए सिमरिया घाट पर कल्प किया था.
देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु:हर साल कार्तिक मास में लगने वाले प्रसिद्ध कल्पवास मेले में बिहार ही नहीं, कई अन्य राज्यों के अलावा नेपाल तक से श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिमरिया कल्पवास मेले को वर्ष 2008 में राजकीय मेला का दर्जा दिया था. उसके बाद यहां 2011 में अर्ध कुंभ और 2017 में महाकुंभ का आयोजन हो चुका है, एक बार फिर यहां अर्ध कुंभ का आयोजन हो रहा है.
बसती है आठ करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा: बता दें कि यह एक ऐसा स्थान है जहां 8 करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा बसती है. देश में धार्मिक आस्था के इस प्रमुख केंद्र पर जाती, धर्म, अमीरी, गरीबी से अलग लोग पर्ण कुटीरों मे रहकर श्रद्धाभाव से गंगा की पूजा अर्चना और मोक्ष पाने के लिए तपस्या करते है. आस्था का यही स्वरूप कल्पवास की परंपरा को बेहद ही खास और अलग बनाता है. श्रद्धांलु पुरे एक महीने तक एक अलग और अनोखी दुनिया का एहसास करते है, जो देश विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है.
कल्पवास की क्या है मान्यता: मिथिलांचल के लोगों के लिए यह एक एक पुण्यभूमि है, जिसका अपना धार्मिक इतिहास रहा है. सिमरिया मगध का उत्तरी, अंग का पश्चिमी और मिथिला का दक्षिणी किनारा होने के कारण यह एक विशिष्ट स्थान है. कहा जाता है कि इसी स्थान से होकर भगवान राम, माता सीता के साथ अयोध्या गए थे. इसी स्थान पर राजा जनक ने माता सीता के पैर पखारने का काम किया था. कहा जाता है कि राजा जनक ने भी यहां कल्पवास किया था जिसके बाद सिमरिया में कल्पवास की अनोखी परंपरा आगे बढ़ी.