बांका: रामधारी सिंह दिनकर की एक मशहूर कविता है. 'मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है. गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर'. इस काव्य पंक्ति को जिले के विशनपुर गांव के युवाओं ने चरितार्थ करके दिखाया है. दरअसल, यहां के ग्रामीण युवाओं ने चांदन नदी में रास्ता बनाने का प्रण लिया. जिसके बाद वे इसे मूर्त रुप दने में जुट गए. आखिरकर श्रमदान और आपस में जमा किए पैसे से युवाओं ने असंभव से दिखने वाले कार्य को मूर्त रूप दे दिया.
'श्रमदान से नदी पार करने के लिए रास्ता'
इसको लेकर युवा रमेश कुमार सिंह ने बताया कि चांदन नदी पर बने पुल का एक बड़ा हिस्सा हो गया था. पुल क्षतिग्रस्त होने के बाद लाखों की आबादी जिला मुख्यालय से कट गई थी. लोगों को काफी चक्कर लगाकर बांका आना पड़ता था. कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगाई थी. बावजूद कोई पहल नहीं हो पा रही थी. इसके बाद गांव के युवाओं की टोली ने चांदन नदी में ही रास्ता बनाने का ठाना और मूर्त रूप देने में जुट गए. नदी में रास्ता बनाने का राह इतना आसान भी नहीं था. इसके लिए पैसे की भी जरूरत थी. युवाओं ने गांव में चंदा इकट्ठा किया और नदी में रास्ता बनाने के लिए जेसीबी का सहारा लेकर समतलीकरण का काम शुरू किया. अब युवा रोजाना सुबह और शाम रास्ते को दुरुस्त करने में लगे हुए हैं. हाथ में कुदाल थामकर नदी के उबड़-खाबड़ हिस्से को समतल बनाने का काम पूरी तन्मयता से जारी है. युवाओं का कहना है कि श्रमदान से नदी ने रास्ता दे दिया है.