बांका: बिहार के बांका के अमरपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत कटोरिया गांव में दशकों से चल रहे हैंडलूम में अब आमूलचूल परिवर्तन आ रहा है. यहां के लोग अब पावर लूम से तसर सिल्क तैयार कर रहे हैं. इस काम में केंद्रीय तकनीकी प्राद्यौगिकी अनुसंधान संस्थान का रेशम तकनीकी सेवा केंद्र भी बुनकरों का सहयोग कर रही है. रेशम तकनीकी सेवा केंद्र भागलपुर के प्रभारी तथा वैज्ञानिक सी त्रिपुरारी चौधरी ने बताया कि गांव की कुछ महिलाओं को बुनियादी रिलिंग मशीन पर पांच दिनों का प्रशिक्षण दिया गया है.
Banka News: अमरपुर में महिलाएं पावरलूम से तैयार करेंगी धागा, परेशानी से मिलेगी निजात
बांका कटोरिया में महिलाएं अब थाई पर धागा तैयार करने के बदले पावरलूम चलाकर इसका उत्पादन कर रही है. इससे महिलाओं की आमदनी भी बढ़ी है और उन्हें थाई पर धागा बनाने से होने वाली परेशानी से भी छुटकारा मिला है. इस काम में रेशम तकनीकी सेवा केंद्र का सहयोग मिल रहा है. पढ़ें पूरी खबर..
अब थाई पर नहीं बनाना पड़ेगा धागाःप्रशिक्षक मो तौसीफ रजा तथा मो इम्तियाज ने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया. उन्होंने बताया कि इस मशीन पर कोकून से धागा तैयार किया जाता है तथा तैयार धागे का रिलिंग मशीन पर लच्छी बनाई जाती है. यही लच्छी बुनकर के पास जाती है और फिर कपड़े तैयार किए जाते हैं. पहले महिलाएं थाई पर धागा बनाती थीं. इसे कुप्रथा माना जाता था. साथ ही इससे कई गंभीर बीमारी की आशंका बनी रहती थी. सरकार ने बुनकरों को सौ प्रतिशत अनुदान पर पावर लूम का वितरण किया है. अख्तर रजा बताया कि थाई पर जितना धागा तैयार होता था, उसका दोगुना धागा पावर लूम पर तैयार होगा.
"कुछ महिलाओं को बुनियादी रिलिंग मशीन पर पांच दिनों का प्रशिक्षण दिया गया है. प्रशिक्षक मो तौसीफ रजा तथा मो इम्तियाज ने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया"-सी त्रिपुरारी चौधरी, वैज्ञानिक, रेशम तकनीकी सेवा केंद्र
बुनकरों को मिला पावरलूमः सिर्फ कटोरिया गांव में तीन सौ बुनकरों को पावर लूम उपलब्ध कराया गया. ग्रामीण मो. अख्तर रजा कहते हैं कि उनके गांव में यह पुश्तैनी काम खत्म हो रहा था. इससे गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी और गांव की जो महिलाएं धागा निर्माण से जुड़ी थीं उनकी आजीविका भी खत्म हो रही थी. ऐसे में लोगों ने केंद्रीय रेशम बोर्ड के वैज्ञानिक सी त्रिपुरारी चौधरी से मदद करने को कहा. तब कुछ महिलाओं को पावर लूम के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया गया. अब गांव के प्रत्येक घर की महिलाओं को इस कुटीर उद्योग से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि गांव का यह पुश्तैनी धंधा चलता रहे.