बांका: पूर्वी बिहार के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक तिलडीहा दुर्गा मंदिर बांका-मुंगेर जिले के सीमा पर बदुआ नदी के किनारे अवस्थित है. स्थापना काल से ही इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. इस मंदिर का इतिहास 400 से अधिक वर्ष पुराना है.
लॉकडाउन के कारण मंदिरों में नहीं आ रहे लोग स्थापना काल से लेकर अब तक कई त्रासदी और बदलाव का साक्षी रहे इस मंदिर का पट भक्तों के लिए कभी बंद नहीं हुआ, लेकिन इस कोरोना महामारी ने भक्तों को भी भगवान से अलग कर दिया. मंदिर बंद होने का सबसे अधिक प्रभाव आसपास के दर्जनों गांव के सैकड़ों छोटे-छोटे दुकानदारों पर पड़ा, जिसकी आजीविका इसी मंदिर के सहारे चलती थी. अब उनके सामने आर्थिक तंगी की वजह से रोजी-रोटी की समस्या आन पड़ी है.
मंदिर बंद होने से दुकाने बंद 1603 ई. में तांत्रिक विधि से हुई थी स्थापना
तिलडीहा दुर्गा मंदिर के मेढ़पति श्यामसुंदर दास ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना 1603 ई. में उनके पूर्वज हरि बल्लभ दास ने तांत्रिक विधि से की थी. तब से लेकर आज तक भक्तों के लिए इस मंदिर का पट कभी बंद नहीं हुआ था. कोरोना महामारी को लेकर सरकार से मंदिर बंद करने का निर्देश मिला, तो समिति के सदस्यों ने मंदिर को बंद कर दिया. मंदिर में दैनिक पूजा पाठ तो होता है, लेकिन यहां के पुजारियों की स्थिति भुखमरी जैसी हो गई है. श्रद्धालु नहीं आने की वजह से आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है, जब तक मंदिर का पट नहीं खुल जाता है, इनकी परेशानी कम नहीं होने वाली है.
तिलडीहा दुर्गा मंदिर का गेट बंद आर्थिक तंगी का दंश झेल रहे हैं दुकानदार
दुर्गा मंदिर की वजह से सैकड़ों परिवार की रोजी-रोटी चलती थी, लेकिन लॉकडाउन ने उनकी स्थिति दयनीय कर दी है. मंदिर परिसर में मिठाई की दुकान चलाने वाले रूपेश कुमार बताते हैं कि मंदिर बंद हुए ढाई महीने से अधिक हो गए हैं, जो कमाए थे वही खाना पड़ रहा था. लेकिन अब वह भी समाप्त हो गया है. बच्चों की पढ़ाई से लेकर परिवार का गुजर-बसर छोटे से मिठाई की दुकान से चलता था. अब ऐसी स्थिति आन पड़ी है एक बार खाना खाते हैं तो दूसरी बार का पता नहीं रहता है कि भोजन नसीब हो पाएगा या नहीं. आर्थिक तंगी की वजह से अगर कर्ज भी मांगते हैं तो कोई देने को तैयार नहीं है.
दो जून की रोटी का जुगाड़ करना हुआ मुश्किल
मिठाई की दुकान चलाने वाले सुमित कुमार मंडल ने बताया कि कोरोना वायरस की वजह से पारिवारिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ चुकी है. आर्थिक तंगी इस कदर हावी हो चुका है कि परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी कठिन हो गया है. इस विषम परिस्थिति में कोई मदद करने वाला भी नहीं है. कमाई का मुख्य जरिया मंदिर ही था. वह भी बंद पड़ा है. अगर मंदिर को नहीं खोला गया. तो भूखे से मरने की नौबत आ जाएगी.